नई तकनीक से भारत में बन सकेंगे ऑप्टिकल कंपोनेंट्स                                                                 

      

शोधकर्ताओं में शामिल अजय राणा, रोहित शर्मा, विनोद मिश्रा, नेहा खत्री और ईशप्रताप सिंह (बाएं से दाएं)

प्टिकल तकनीक का उपयोग संचार के साथ-साथ लाइटिंग, डिस्प्ले और दृष्टि दोषों के सुधार समेत विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हो रहा है। लेकिन भारत में औद्योगिक उत्पादन की जरूरतों को पूरा करने के लिए महंगे ऑप्टिकल कंपोनेंट्स का आयात करना पड़ता है। भारतीय शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में एक ऐसी पद्धति विकसित की है जिसकी मदद से अब भारत में भी ऑप्टिकल कंपोनेंट्स बनाए जा सकेंगे।

इस अध्ययन में सामान्य आकार के ऑप्टिक्स से लेकर नई पीढ़ी के फ्री-फार्म ऑप्टिकल कंपोनेंट्स के उत्पादन की पद्धति विकसित की गई है। ऑप्टिकल उपकरणों के आकार एवं वजन को कम करने और उनकी क्षमता में सुधार में फ्री-फार्म कंपोनेंट्स की भूमिका अहम होती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में बायोमेडिकल, रक्षा, स्वचालित यंत्र उद्योग और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में उपयोग होने वाले उपकरणों के उत्पादन में ये ऑप्टिकल कंपोनेंट्स उपयोगी हो सकते हैं।

ऑप्टिकल कंपोनेंट्स का उपयोग विभिन्न प्रकार के माध्यमों से प्रकाश की स्थिति को बदलने के लिए किया जाता है। संचार प्रणाली में उपयोग होने वाले ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क इसका एक उदाहरण है। सीएसआईआर-केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईओ), चंडीगढ़ और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इससे संबंधित अध्ययन हाल में शोध पत्रिका एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।


" ऑप्टिकल कंपोनेंट्स का उत्पादन चुनौतीपूर्ण कार्य है और इसमें अत्यधिक परिशुद्धता तथा अत्याधुनिक तकनीकों की जरूरत पड़ती है। इस अध्ययन में अत्यधिक परिशुद्धता की मांग वाली मशीनिंग प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने का प्रयास किया गया है। "

सीएसआईआर-सीएसआईओ से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता विनोद मिश्रा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “ऑप्टिकल कंपोनेंट्स का उत्पादन चुनौतीपूर्ण कार्य है और इसमें अत्यधिक परिशुद्धता तथा अत्याधुनिक तकनीकों की जरूरत पड़ती है। इस अध्ययन में अत्यधिक परिशुद्धता की मांग वाली मशीनिंग प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने का प्रयास किया गया है। इस नई पद्धति की मदद से अधिक परिशुद्धता से युक्त उच्च क्षमता के मोल्ड बनाए जा सकेंगे जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए किया जा सकेगा। ऐसे मोल्ड भविष्य में स्वदेशी ऑप्टिकल कंपोनेंट्स की जरूरतों को पूरा करने में मददगार हो सकते हैं।”

किसी सामग्री की काट-छांट करके उसे वांछित आकार में ढालने और सटीक उपकरण विकसित करने की प्रक्रिया मशीनिंग कहलाती है। विनोद मिश्रा ने बताया कि उन्होंने अपने शोध कार्य में अल्ट्रा-प्रिसिजन मशीनिंग प्रक्रिया का उपयोग किया है। इस प्रक्रिया में अतिरिक्त सामग्री को आमतौर पर माइक्रोमीटर स्तर पर बेहद नियंत्रित तरीके से हटाया जाता है, जिसके लिए हीरा काटने के अत्यधिक तेज उपकरणों का उपयोग किया जाता है। कंपन, तापमान, पर्यावरण और मशीनिंग की स्थिति जैसे कारक कंपोनेंट्स की सतह की गुणवत्ता प्रभावित कर सकते है। इन कारकों के प्रभाव को नियंत्रित करके ऑप्टिकल कंपोनेंट्स की सतह में सुधार और उसकी गुणवत्ता को बनाए रखना काफी चुनौतीपूर्ण होता है।

भारत में ऑप्टिक्स कंपोनेंट्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। थर्टी मीटर टेलीस्कोप, लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी, इसरो और रक्षा क्षेत्र की कई बड़ी वैज्ञानिक परियोजनाएं उच्च गुणवत्ता के ऑप्टिकल कंपोनेंट्स पर आधारित हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऑप्टिक फैब्रीकेशन के क्षेत्र के विस्तार के लिए भारत में अधिक संख्या में शोध कार्यों बढ़ावा देने की जरूरत है। शोधकर्ताओं की टीम में विनोद मिश्रा के अलावा अजय राणा, रोहित शर्मा, नेहा खत्री और ईशप्रताप सिंह शामिल हैं।


इंडिया साइंस वायर