एक प्रमुख औद्योगिक रसायन का आयात घटाने में मददगार हो सकती है नई तकनीक                                                                 

      

भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की जा रही एक नई तकनीक से देश को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचत हो सकती है। यह तकनीक 1,4 हाइड्रोक्विनोन नामक रासायनिक अणु के प्रभावी उत्पादन में उपयोगी हो सकती है। खाद्य परिरक्षकों, फार्मास्यूटिकल्स, रंजक (Dyes), और पॉलिमर निर्माण में मध्यवर्ती के रूप में उपयोग होने वाले इस इस रसायन का अत्यधिक उच्च लागत पर आयात करना पड़ता है।

1,4-हाइड्रोक्विनोन; फिनोल नामक एक अन्य रसायन के ऑक्सीकरण द्वारा निर्मित होता है। परंपरागत रूप से, फिनोल ऑक्सीकरण रासायनिक तरीकों से किया जाता है, जिसमें उत्प्रेरक का उपयोग कीमती धातुओं, धातु ऑक्साइड और एंजाइमों के साथ खतरनाक ऑक्सीडेंट के साथ किया जाता है। लेकिन, इन विधियों में कई नुकसान होते हैं, जिनमें पर्यावरणीय खतरों के साथ-साथ प्रारंभिक सामग्री का अधूरा रूपांतरण और उत्पाद चयनात्मकता की कमी शामिल है।

नये अध्ययन में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान सेंटर फॉर नैनो ऐंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज, और सीएसआईआर-राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (एनसीएल) के शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रोलिसिस पर आधारित एक तकनीक विकसित की है, जो फिनोल को 1,4 हाइड्रोक्विनोन में अधिक प्रभावी ढंग से ऑक्सीकृत करने में प्रभावी पायी गई है।


भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की जा रही एक नई तकनीक से देश को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचत हो सकती है। यह तकनीक 1,4 हाइड्रोक्विनोन नामक रासायनिक अणु के प्रभावी उत्पादन में उपयोगी हो सकती है। खाद्य परिरक्षकों, फार्मास्यूटिकल्स, रंजक (Dyes), और पॉलिमर निर्माण में मध्यवर्ती के रूप में उपयोग होने वाले इस इस रसायन का अत्यधिक उच्च लागत पर आयात करना पड़ता है।

इलेक्ट्रोकेमिकल कार्बनिक परिवर्तनों को हाल के दिनों में पारंपरिक रासायनिक विधियों पर विभिन्न आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों की पेशकश के कारण बहुत रुचि के साथ देखा जा रहा है। इन परिवर्तनों को आम तौर पर सब्सट्रेट (इस मामले में फिनोल) के माध्यम से बिजली प्रवाहित करके जलीय माध्यम में किया जाता है। परिणामतः, इस प्रक्रिया में कोई पर्यावरणीय रूप से खतरनाक ऑक्सीडेंट / रिडक्टेंट शामिल नहीं हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि फिनोल ऑक्सीकरण के संबंध में कई व्यावहारिक मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, इस परिवर्तन के लिए पारंपरिक धातु-आधारित इलेक्ट्रोड का उपयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे समय के साथ अपनी सतहों पर ऑक्सीकृत उत्पादों के सोखने के कारण सक्रियता खोना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा, कई बार वे फिनोल को अति ऑक्सीकरण की ओर ले जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उत्पाद चयनात्मकता की कमी होती है, और टार जैसे अवांछित उत्पाद का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त, कुछ इलेक्ट्रोड समय के साथ इलेक्ट्रोड की भौतिक स्थिरता और स्थायित्व जैसी चुनौतियों का भी सामना करते हैं।

इस अध्ययन में, एनसीएल और सीईएनएस (CeNS) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि हाइड्रॉक्सिल, कार्बोक्सिल और कार्बोनिल समूह जैसे ऑक्सीजन-युक्त सतह कार्यात्मक समूहों की सही संख्या के साथ अव्यवस्थित ग्राफीन जैसी संरचनाओं वाले इलेक्ट्रोड का उपयोग करके इन कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने अम्लीय वातावरण में इलेक्ट्रोड के विद्युत रासायनिक उपचार द्वारा सतह संशोधन किया है। उन्होंने इस सतह संशोधन के लिए अनुकूलतम स्थितियां स्थापित की हैं। उनका कहना है कि 87 प्रतिशत चयनात्मकता के साथ 1,4-हाइड्रोक्विनोन में फिनोल का 99 प्रतिशत रूपांतरण हो सकता है।

इस संबंध में, एक आधिकारिक वक्तव्य में कहा गया है कि शोधकर्ता वर्तमान में अन्य औद्योगिक रूप से प्रासंगिक प्रक्रियाओं की तलाश कर रहे हैं, जिन्हें इस तरह के पर्यावरणीय अनुकूल इलेक्ट्रो-ऑर्गेनिक परिवर्तनों द्वारा पूरा किया जा सके।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/DST-CSIR/IMPORTREDUCTION/04/01/2022

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