नई तकनीक से कम हुई जेरेनियम खेती की लागत                                                                 

      

सुगंधित पौधों की खेती किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी एक प्रमुख जरिया बन सकती है। जेरेनियम भी एक ऐसा ही सुगंधित पौधा है जिसका तेल बेहद कीमती होता है। लखनऊ स्थित सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिकों ने पॉलीहाउस की सुरक्षात्मक शेड तकनीक विकसित की है, जिससे जेरेनियम उगाने की लागत कम हो गई है।

आमतौर पर जेरेनियम की पौधे से पौध तैयार की जाती है। लेकिन, बारिश के दौरान पौध खराब हो जाती थी, जिसके कारण किसानों को पौध सामग्री काफी महंगी पड़ती थी। सीमैप के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित जेरेनियम की खेती की इस नई तकनीक से करीब 35 रुपये की लागत में तैयार होने वाला पौधा अब सिर्फ दो रुपये में तैयार किया जा सकेगा।

इस परियोजना नेतृत्व कर रहे सीमैप के वैज्ञानिक डॉ. सौदान सिंह ने बताया कि “जेरेनियम की पौध को अब तक वातानिकुलित ग्लास हाउस में संरक्षित किया जाता था, लेकिन अब पॉलीहाउस की सुरक्षात्मक शेड तकनीक विकसित हो जाने से किसान के खेत पर ही काफी सस्ती लागत में इसे तैयार कर सकते हैं। एक एकड़ खेती के लिए करीब चार हजार पौधों की जरूरत पड़ती है। इसके लिए 50-60 वर्ग मीटर का पॉलीहाउस बनाना होता है, जिसमें करीब 8-10 हजार रुपये का खर्च आता है। दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में जेरेनियम की फसल बढ़िया होती है। इसकी खेती का सबसे उपयुक्त समय नवंबर महीने को माना जाता है।”


“सीमैप अरोमा मिशन के तहत जेरेनियम की खेती को बढ़ावा देने के लिए मदर प्लांट उपलब्ध करा रहा है। इस पहल का उद्देश्य जेरेनियम की खेती को व्‍यावसायिक रूप से बढ़ावा देना है ताकि किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सके।”

डॉ. सौदान सिंह ने बताया कि “सीमैप ने सगंध फसल के अंतर्गत मेंथा के विकल्प के रूप में जेरेनियम को बढ़ावा देने के लिए अरोमा मिशन के अंतर्गत इसकी खेती शुरू की गई है। सीमैप अरोमा मिशन के तहत जेरेनियम की खेती को बढ़ावा देने के लिए मदर प्लांट उपलब्ध करा रहा है। इस पहल का उद्देश्य जेरेनियम की खेती को व्‍यावसायिक रूप से बढ़ावा देना है ताकि किसानों की आय में बढ़ोतरी हो सके।”

उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में जेरेनियम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, उनमें लखनऊ, सीतापुर, कानपुर, बाराबंकी, बदायूं, अलीगढ़, गाजियाबाद, रामपुर, बरेली, रायबरेली, फतेहपुर, अंबेडकर नगर, उन्नाव, गोरखपुर, हरदोई, एटा, हाथरस, संभल, मथुरा, बांदा, बुलंदशहर, कन्नौज, जालौन, अमेठी, कासगंज एवं बिजनौर शामिल हैं। शुरुआती दौर में इन जिलों के लगभग 133 किसानों को जेरेनियम की पौध सामग्री उपलब्ध कराई गई है।

सीमैप के कार्यकारी निदेशक डॉ. अब्दुल समद ने बताया कि “सीमैप द्वारा अरोमा मिशन के तहत इस वर्ष जेरेनियम की पौध सामग्री से लगभग 50 हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेती हो सकेगी। उम्मीद की जा रही है कि इससे अगले वर्ष जून तक लगभग 750 किलो सुगंधित तेल प्राप्त किया जा सकेगा।”

जेरेनियम मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका का पौधा है। इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में होती है। जेरेनियम के पौधे से प्राप्त तेल काफी कीमती होता है। भारत में इसकी औसत कीमत करीब 12 से 18 हजार रुपये प्रति लीटर है। मात्र चार माह की फसल में लगभग 80 हजार रुपये की लागत आती है और इससे करीब 1.50 लाख रुपये तक मुनाफा होता है।
इंडिया साइंस वायर

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