भूस्खलन के सटीक पूर्वानुमान के लिए नया एलगोरिद्म विकसित                                                                 

      

डॉ डेरिक्स पी. शुक्ला (दाएं) और डॉ. शरद कुमार गुप्ता (बाएं)

क ताजा अध्ययन में, भारतीय शोधकर्ताओं ने कृत्रिम बुद्धिमता और मशीन लर्निंग का उपयोग करके नया एलगोरिद्म विकसित किया है, जिससे भूस्खलन के पूर्वानुमान को अधिक सटीक बनाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके उपयोग से भूस्खलन संवेदी मैपिंग में उपयोग होने वाले डेटा के असंतुलन की चुनौतियों से निपटा जा सकता है, और पूर्वानुमान में सुधार किया जा सकता है।

यह अध्ययन, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी के स्कूल ऑफ सिविल ऐंड एंवायरमेंटल इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ डेरिक्स पी. शुक्ला और तेल अबीब यूनिवर्सिटी (इस्रराइल) के शोधकर्ता डॉ शरद कुमार गुप्ता द्वारा किया गया है। इस अध्ययन में, उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र के मंदाकिनी नदी बेसिन में, वर्ष 2004 से 2017 के बीच हुए भूस्खलन के आँकड़ों का उपयोग मशीन लर्निंग मॉडल के प्रशिक्षण एवं पुष्टि के लिये किया गया है। यह अध्ययन शोध पत्रिका लैंडस्लाइड में प्रकाशित किया गया है।

डॉ डेरिक्स पी. शुक्ला बताते हैं, “किसी गैर-भूस्खलन क्षेत्र की तुलना में भूस्खलन वाले क्षेत्रों के प्वाइंट्स में अंतर होता है। जब इस डेटा को मशीन लर्निंग तकनीकों में उपयोग किया जाता है, तो उसमें असंतुलन देखने को मिलता है, और इस कारण पूर्वानुमान प्रभावित होता है। जिस तरफ डेटा अधिक होता है, उस ओर मॉडल का झुकाव होने लगता है। यदि डेटा में असुंतलन होता है, तो भूस्खलन पूर्वानुमान संबंधी सटीक परिणाम नहीं मिल पाते। इस समस्या को देखते हुए हमने डेटासेट में संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है, ताकि सटीक परिणाम प्राप्त किये जा सकें।”


एक ताजा अध्ययन में, भारतीय शोधकर्ताओं ने कृत्रिम बुद्धिमता और मशीन लर्निंग का उपयोग करके नया एलगोरिद्म विकसित किया है, जिससे भूस्खलन के पूर्वानुमान को अधिक सटीक बनाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके उपयोग से भूस्खलन संवेदी मैपिंग में उपयोग होने वाले डेटा के असंतुलन की चुनौतियों से निपटा जा सकता है, और पूर्वानुमान में सुधार किया जा सकता है।


डॉ शुक्ला कहते हैं, “डेटासेट में संतुलन स्थापित करने पर भूस्खलन पूर्वानुमान में 20 प्रतिशत सुधार हुआ है, और पूर्वानुमान की सटीकता 72 प्रतिशत से बढ़कर 92 प्रतिशत हो गई है। मशीन लर्निंग और डेटा साइंस आधारित अन्य अनुप्रयोगों में भी इस तकनीक का उपयोग कर सकते हैं। इसका उपयोग हिमस्खलन, बाढ़ अथवा तुषार-भूमि या पर्माफ़्रोस्ट जैसे अन्य डेटासेट्स पर आधारित मैपिंग और संवेदनशील क्षेत्रों के निर्धारण में हो सकता है। इसके उपयोग से सटीक नक्शे तैयार किये जा सकते हैं, जिससे पता चल सकता है कि कौन-से क्षेत्र अधिक जोखिम वाले हैं। नीति-निर्धारकों को भी इन नक्शों के उपयोग से प्रभावी नीतियों के निर्माण में मदद मिल सकती है, जिससे जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है।”

पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन होते रहते हैं, जिसके कारण जानमाल का नुकसान होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकार की आपदाओं के पूर्वानुमान और इनसे निपटने के लिए ऐसे क्षेत्रों की पहचान जरूरी है, जो भूस्खलन संवेदी हों। ढलान, उठान, भूगर्भ विज्ञान, मिट्टी के प्रकार, भ्रंशों से दूरी, नदियां एवं भ्रंश-क्षेत्र, और ऐतिहासिक भूस्खलन संबंधी आंकड़े किसी विशिष्ट क्षेत्र में भूस्खलन के लिए जिम्मेदार संकेतक माने जाते हैं। भूस्खलन संवेदी मैपिंग में इन कारकों से जुड़े आंकड़ों का उपयोग होता है।

भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अनुमान लगाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) का उपयोग काफी महत्वपूर्ण हो गया है। इससे मौसम संबंधी घटनाओं के अनुमान, मानचित्रण, वास्तविक समय में घटनाओं का पता लगाने, परिस्थितियों के अनुरूप जागरूकता के प्रसार और निर्णय लेने में सहयोग मिल सकता है। मशीन लर्निंग, कृत्रिम बुद्धिमता का एक उपक्षेत्र है, जो विशिष्ट प्रोग्रामिंग किये बिना कम्प्यूटर को सीखने और अपना अनुभव बेहतर करने में सक्षम बनाता है। यह एलगोरिद्म आधारित तकनीक है, जो मानव बुद्धिमता की तरह काम करती है, और डेटा के आधार पर निर्णय लेती है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/IIT-MANDI/Landslide-Modelling/HIN/21/02/2023