विज्ञान दिवस पर विज्ञान-संचारकों को राष्ट्रीय पुरस्कार                                                                 

      

वैज्ञानिक चेतना के प्रचार-प्रसार में योगदान देने वाले विज्ञान-संचारकों को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ जितेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए हैं। भारत सरकार के राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) की ओर से हर वर्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में उल्लेखनीय योगदान देने वाले संचारकों को ये पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस मौके पर ‘अवसर’ (ऑग्मेंटिंग राइटिंग स्किल्स फॉर आर्टिकुलेटिंग रिसर्च) प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया है।

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस को चिह्नित करने के लिए डॉ जितेंद्र सिंह ने विदेशों में बसे भारतीय प्रवासियों के लिए वैभव फैलोशिप की शुरू करने की घोषणा की है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा, वैभव फैलोशिप का उद्देश्य भारतीय संस्थानों और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों के बीच अकादमिक और अनुसंधान सहयोग के माध्यम से संकाय/शोधकर्ताओं की गतिशीलता को बढ़ाना और भारत के उच्च शैक्षिक संस्थानों के अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करना है। उन्होंने कहा, डायस्पोरा के सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क और देश में कार्यरत वैज्ञानिक प्रतिभाओं के परस्पर सहयोग से विश्व स्तर की परियोजनाओं और उत्पादों के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।

एनसीएसटीसी द्वारा विज्ञान को लोकप्रिय बनाने और संचार के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रयासों के प्रोत्साहन और वैज्ञानिक अभिरुचि बढ़ाने में योगदान देने वाले लोगों एवं संस्थाओं को छह श्रेणियों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय संचार पुरस्कार दिया जाता है। जबकि, ‘अवसर’ एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता है, जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े विभिन्न विषयों में डॉक्टोरल या पोस्ट डॉक्टोरल शोधार्थियों से उनके शोध विषय पर आधारित सरल भाषा में आलेख आमंत्रित किए जाते हैं, और सर्वश्रेष्ठ आलेखों को पुरस्कृत किया जाता है।

वर्ष 2023 के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की विषयवस्तु ‘वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान’ है। केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ जितेंद्र सिंह ने पुरस्कार विजेताओं को बधाई देते हुए कहा, ‘वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान’ की थीम भारत के जी-20 के उद्देश्यों के अनुरूप है, जहाँ वह ग्लोबल साउथ यानी एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों की आवाज़ बनने की दिशा में अग्रसर है।


वैज्ञानिक चेतना के प्रचार-प्रसार में योगदान देने वाले विज्ञान-संचारकों को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ जितेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए हैं। भारत सरकार के राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (एनसीएसटीसी) की ओर से हर वर्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में उल्लेखनीय योगदान देने वाले संचारकों को ये पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस मौके पर ‘अवसर’ (ऑग्मेंटिंग राइटिंग स्किल्स फॉर आर्टिकुलेटिंग रिसर्च) प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया है।


डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा, मई, 2014 से, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभाला, तभी से विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय एवं अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा जैसे अन्य विज्ञान विभागों के लिए प्राथमिकताओं और लक्ष्यों में स्पष्ट बदलाव आया है। उन्होंने कहा, प्रतिभा और क्षमताओं की कोई कमी नहीं थी, लेकिन 2014 के बाद से नीति नियोजन के साथ-साथ राजनीतिक व्यवस्था दोनों में बदलाव हुआ है। अंतरिक्ष क्षेत्र की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि बेहद कम समय में वैक्सीन विकास करके भारत ने अपनी वैज्ञानिक क्षमता को साबित किया है।

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, डॉ अजय कुमार सूद ने ‘वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान’ विषय के पीछे के तर्क को समझाया और कहा कि कोविड-19 के आलोक में देखें तो आज विश्व वैश्विक चुनौतियों से लड़ने के लिए अधिक करीब आ गया है। डॉ सूद ने यह भी बताया कि 28 फरवरी 1928 को प्रतिष्ठित भारतीय भौतिक-विज्ञानी सी.वी. रामन ने एक महत्वपूर्ण खोज की घोषणा की, जिसे ‘रामन प्रभाव’ के नाम से जाना जाता है। आज रामन की इस खोज का उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों में होता है। इसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

भारत सरकार ने 1986 में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (NSD) के रूप में नामित किया। इस अवसर पर पूरे देश में विज्ञान संचार गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के मुख्य कार्यक्रम में भारत सरकार के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के. विजय राघवन ने अपना विशेष व्याख्यान दिया।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ श्रीवारी चंद्रशेखर ने कहा कि “राष्ट्रीय विज्ञान दिवस एक ऐसा दिन है, जब हम ‘रामन प्रभाव’ को याद करते हैं, और इसका उत्सव मनाते हैं। महत्वपूर्ण वैज्ञानिक दिवसों का उत्सव सामुदायिक स्तर पर वैज्ञानिक जागरूकता लाने में सहायक है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के समर्थन एवं सहयोग से देशभर में विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। डीएसटी से सम्बद्ध संस्थानों और राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदों तथा अन्य विभागों के माध्यम से देशभर में वैज्ञानिक व्याख्यान, विज्ञान क्विज़, ओपेन हाउस आदि आयोजित किए जाते हैं।”


इस दौरान विभिन्न प्रकाशनों का लोकार्पण भी किया गया है। इनमें ‘वुमेन इंजीनियर्स इन इंडिया’, ‘लैंडमार्क अचीवमेंट्स इन इंजीनीयर्स ऐंड टेक्नोलॉजी इन इंडिपेंडेंट इंडिया’, ‘टेक्नोलॉजिकल प्रिपेयर्डनेस फॉर डीलिंग विद नेशनल डिसरप्शन्स’, ‘कंपेन्डियम ऑफ अवसर – सेलेक्टेड पॉपुलर साइंस स्टोरीज फॉर द ईयर 2021’, और ‘विज्ञान विदुषी – 75 वुमेन ट्रेलब्लेजर्स ऑफ साइंस’ शामिल हैं।

इस वर्ष ‘अवसर’ प्रतियोगिता के अंतर्गत पोस्ट डॉक्टोरल श्रेणी में उत्कृष्ट आलेख के लिए प्रथम पुरस्कार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के शोधकर्ता डॉ अमृतेश कुमार को प्रदान किया गया है। ‘अवसर’ प्रतियोगिता की पीएचडी श्रेणी में प्रथम पुरस्कार आईआईटी पटना की शोधार्थी नेहा पाराशर को मिला है। पीएचडी श्रेणी में द्वितीय पुरस्कार आईआईटी, हैदराबाद की शोधार्थी अनीस फातिमा और महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी, महाराष्ट्र में डॉक्टोरल रिसर्च स्कॉलर अंकुश पुरुषोत्तम वानखेड़े को प्रदान किया गया है। पीएचडी श्रेणी के लिए तीसरा पुरस्कार सीएसआईआर-सीएफटीआरआई, मैसूर की शोधार्थी रोहिणी बी. और हैदराबाद विश्वविद्यालय, तेलंगाना की शोधार्थी मोनिका पांडेय को दिया गया है।

विज्ञान संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए संचारकों को छह श्रेणियों में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। श्रेणी-'क' के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में उत्कृष्ट प्रयास के लिए पाँच लाख रुपये का राष्ट्रीय पुरस्कार इस वर्ष बेंगलुरु की संस्था कर्नाटक विज्ञान और प्रौद्योगिकी अकादमी को मिला है।

श्रेणी-'ख' में, पुस्तकों एवं पत्रिकाओं सहित प्रिंट मीडिया के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार में योगदान के लिए इस बार भुवनेश्वर, ओडिशा के विज्ञान संचारक प्रोफेसर मायाधर स्वाइं और तिरुवनंतपुरम, केरल के स्वतंत्र लेखक डॉ बीजू धर्मपालन को प्रदान किया गया है। इस पुरस्कार के तहत दो लाख रुपये की नकद राशि, स्मृति चिह्न और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है। श्रेणी-'ग' बच्चों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी लोकप्रियकरण में उत्कृष्ट प्रयासों केलिए राष्ट्रीय पुरस्कार हैदराबाद के जैव रसायनज्ञ डॉ कृष्णाराव अप्पासानी और नई दिल्ली स्थित मिलेनियम इंडिया एजुकेशन फाउंडेशन के निदेशक डॉ उदय कुमार काकरू को प्रदान किया गया है।


आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं और अंग्रेजी अनुवाद में उत्कृष्ट प्रयास के लिए राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार पुरस्कार की श्रेणी-'घ' के अंतर्गत जयपुर से प्रकाशित वैज्ञानिक दृष्टिकोण के संपादक तरुण कुमार जैन को पुरस्कृत किया गया है। श्रेणी-'ङ' में, नवोन्मेषी और पारंपरिक पद्धतियों के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार में उत्कृष्ट प्रयासों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अगरतला, त्रिपुरा के सहायक शिक्षक अंजन बनिक को प्रदान किया गया है। श्रेणी 'च' में, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार में उत्कृष्ट प्रयासों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार नई दिल्ली के विज्ञान संपादक/विज्ञान फिल्म निर्माता राकेश अन्दानिया को प्रदान किया गया है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/NSD-2023/HIN/27/02/2023