‘कोविड रोगियों में थक्का-रोधी दवा की मध्यम खुराक अधिक प्रभावी’                                                                 

      

कोरोना वायरस के प्रकोप से उपजी कोविड-19 महामारी से दुनिया अभी पूरी तरह उबर नहीं सकी है। कोविड-19 उपचार के दौरान रक्त के थक्के (थ्रोम्बोस) बनने का ख़तरा बढ़ जाता है। इससे अंगों के फेल होने की आशंका रहती है। भारतीय शोधकर्ताओं समेत अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं को अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों के रक्त को पतला करने वाले उपचार के कुशलतम स्तर की पहचान करने में सफलता मिली है।

चिकित्सीय परीक्षण की एक अंतरराष्ट्रीय पहल - ऑस्ट्रेलियन कोविड-19 ट्रायल (ASCOT) के अंतर्गत कोविड-19 उपचार से संबंधित ऐसे चिकित्सीय साक्ष्य जुटाने में शोधकर्ताओं को सफलता मिली है, जिससे कोविड-19 के प्रकोप के दौरान मृत्यु दर कम करने के साथ-साथ अस्पताल में भर्ती रोगियों में मैकेनिकल वेंटिलेशन की आवश्यकता को कम किया जा सकता है।

इस अध्ययन से पता चला है कि थक्का-रोधी दवा की कम खुराक की तुलना में मध्यवर्ती खुराक के अधिक प्रभावी होने की संभावना 86 प्रतिशत होती है। हालाँकि, दवा के इससे अधिक उपचारात्मक डोज का कोई लाभ नहीं देखा गया है।

नई दिल्ली स्थिति जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, इंडिया; क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, लुधियाना; क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर; महाराजा अग्रसेन सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, नई दिल्ली; और सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर, पुणे सहित अन्य राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी से यह अध्ययन किया गया है।

ऐसे समय में जब कोविड-19 वैश्विक महामारी के रूप में एक चुनौती बनी हुई है, तो इस अध्ययन में यह जानने का प्रयास किया गया है कि अस्पताल में भर्ती कोविड-19 मरीजों में कौन-सी उपचार पद्धति अधिक प्रभावी हो सकती है। इस अध्ययन के परिणामों का लगातार विश्लेषण किया जा रहा है, ताकि अप्रभावी उपचारों को रोका जा सके; और ट्रायल के हिस्से के रूप में नई उपचार पद्धतियों का मूल्यांकन किया जा सके।

शोधकर्ताओं ने थक्का-रोधी (रक्त पतला करने) दवाओं के विभिन्न स्तरों का आकलन करने के लिए एक यादृच्छिक चिकित्सीय परीक्षण किया है। इस अध्ययन में, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत और नेपाल के 1,500 से अधिक रोगियों को शामिल किया गया है।


कोरोना वायरस के प्रकोप से उपजी कोविड-19 महामारी से दुनिया अभी पूरी तरह उबर नहीं सकी है। कोविड-19 उपचार के दौरान रक्त के थक्के (थ्रोम्बोस) बनने का ख़तरा बढ़ जाता है। इससे अंगों के फेल होने की आशंका रहती है। भारतीय शोधकर्ताओं समेत अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं को अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों के रक्त को पतला करने वाले उपचार के कुशलतम स्तर की पहचान करने में सफलता मिली है।


नई दिल्ली स्थिति जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, इंडिया के कार्यकारी निदेशक, प्रोफेसर विवेकानंद झा ने कहा है - “ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में कोविड-19 के सक्रिय मामलों की संख्या कम थी। ऐसे में, हमारे मौजूदा नेटवर्क से भारत और नेपाल में परीक्षण करने का मार्ग प्रशस्त हुआ, जहाँ कोविड-19 सक्रिय था। अंततः वैश्विक प्रासंगिकता के इस अध्ययन को सफलतापूर्वक पूरा किया गया। डेल्टा संस्करण के प्रकोप के कठिन समय में प्रतिभागियों का चयन हमारे जाँचकर्ताओं और कर्मचारियों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”

अध्ययन के प्रधान शोधकर्ता और रॉयल मेलबर्न अस्पताल में संक्रामक रोग चिकित्सक प्रोफेसर स्टीवन टोंग बताते हैं – “ऑस्ट्रेलिया में वर्तमान उपचार पद्धति में थक्का-रोधी दवा की कम खुराक शामिल है, जबकि अंतरराष्ट्रीय दिशा-निर्देश दवा की उच्च चिकित्सीय खुराक की सलाह देते हैं। हमारे अध्ययन के निष्कर्ष इस बात का प्रमाण देते हैं कि एक मध्यवर्ती विकल्प सबसे अधिक फायदेमंद हो सकता है। इस अध्ययन के निष्कर्ष डब्ल्यूएचओ प्रायोजित दिशा-निर्देशों को भी संसूचित करेंगे।”

मोनाश यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता ज़ो मैक क्विल्टन ने कहा है कि "यह महत्वपूर्ण है कि थक्का-रोधी दवा की मध्यवर्ती खुराक से रक्तस्राव का खतरा बढ़ने का प्रमाण नहीं मिला है। वहीं, दवा की उच्च चिकित्सीय खुराक से लाभ का प्रमाण भी नहीं पाया गया है।" मैक क्विल्टेन ने आगे बताया कि "अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी एनुअल मीटिंग ऐंड एक्सपोज़िशन में प्रस्तुति के लिए इस अध्ययन का चयन हुआ है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख हेमेटोलॉजी सम्मेलन है।"

न्यूजीलैंड के मिडिलमोर अस्पताल में क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट और संक्रामक रोग चिकित्सक डॉ सुसैन मोरपेथ कहती हैं - “महामारी के दौरान, चिकित्सीय दिशा-निर्देशों और रोगियों की प्रभावी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए वास्तविक समय में यादृच्छिक चिकित्सीय परीक्षण साक्ष्य अर्जित करना महत्वपूर्ण है। इस ट्रायल को अनुक्रियाशील (Responsive) एवं अनुकूलक (Adaptive) परीक्षण के रूप में डिजाइन किया जा रहा है। इसका अर्थ है कि यदि कोई दवा प्रभावी साबित हो रही है, तो उस उपचार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए परीक्षण को अनुकूलित कर सकते हैं। इसके विपरीत, कोई दवा प्रभावी नहीं है, या गंभीर दुष्प्रभाव पैदा कर रही है, तो हम उसे रोक देते हैं।"

द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, ऑस्ट्रेलिया के प्रोफेसर बाला वेंकटेश ने कहा कि "यह अध्ययन विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में चिकित्सीय परीक्षणों के महत्व को रेखांकित करता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों को कोविड-19 अध्ययनों में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है। यह पहल उन कुछेक अध्ययनों में शामिल है, जिनमें ऐसे क्षेत्रों की बड़ी भागीदारी है। उम्मीद की जा रही है कि इस परीक्षण के परिणाम चिकित्सीय दिशा-निर्देशों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने में भूमिका निभाएंगे।"

ऑस्ट्रेलियन पार्टनरशिप फॉर प्रिपेयर्डनेस रिसर्च ऑन इन्फेक्शियस डिसीज एमर्जेंसीज (APPRISE) सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सहयोग पर आधारित यह अध्ययन शोध पत्रिका एवीजेएम एविडेन्स में प्रकाशित किया गया है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/TGIFGH/COVID-19/HIN/15/12/2022