आईआईटी रुड़की ने विकसित किया उच्च-क्षमता वाला पेरोव्स्काइट सोलर सेल                                                                 

      

आईआईटी रुड़की परिसर का एक दृश्य (फोटोः क्रिएटिव कॉमन्स)

भी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सूर्य की ऊर्जा को सबसे अधिक टिकाऊ माना जाता है। करीब एक दशक से सिलिकॉन सोलर सेल की तुलना में पेरोव्स्काइट सोलर सेल (पीएससी) को इसकी उच्च ऊर्जा रूपांतरण दक्षता (पीसीई) और सस्ती तथा सरल निर्माण प्रक्रिया के कारण फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकी की अगली पीढ़ी के प्रभावी विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

एक नये अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के शोधकर्ताओं को उच्च क्षमता के पेरोव्स्काइट सोलर सेल विकसित करने में सफलता मिली है। यह सौर सेल उत्कृष्ट ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक गुणों, संरचनात्मक विविधता और उत्कृष्ट परिवेशी स्थिरता से लैस है। इसके प्रोटोटाइप में 17.05% स्थिर ऊर्जा रूपांतरण दक्षता पायी गई है, जो अर्ध-द्वि-आयामी पेरोव्स्काइट सौर सेल के मामले में अब तक का उच्चतम स्तर है।

संशोधित पेरोव्स्काइट सौर सेल से शोधकर्ताओं को इष्टतम फेज़ डिस्ट्रीब्यूशन, बढ़े हुए कण आकार और बेहतर क्रिस्टलीयता प्राप्त करने में सफलता मिली है। उनका कहना है कि यह खोज लंबे समय तक परिचालन स्थिरता बनाये रखने के नये अवसर और अत्यधिक कुशल पेरोव्स्काइट सौर सेल के विकास की पेशकश करती है।

अर्ध-द्वि-आयामी पेरोव्स्काइट्स ने अपने अनूठे ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक गुणों, संरचनात्मक विविधता और उत्कृष्ट परिवेशी स्थिरता के कारण हाल में ध्यान आकर्षित किया है। ये कुछ ऐसे घटक हैं, जो पेरोव्स्काइट्स के विकास की प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं। ये घटक निष्क्रिय एजेंट के रूप में खामियों को समाप्त करने में भी भूमिका निभाते हैं।


सभी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सूर्य की ऊर्जा को सबसे अधिक टिकाऊ माना जाता है। करीब एक दशक से सिलिकॉन सोलर सेल की तुलना में पेरोव्स्काइट सोलर सेल (पीएससी) को इसकी उच्च ऊर्जा रूपांतरण दक्षता (पीसीई) और सस्ती तथा सरल निर्माण प्रक्रिया के कारण फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकी की अगली पीढ़ी के प्रभावी विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।


इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर सौमित्र सतपथी बताते हैं कि "पेरोव्स्काइट सौर सेल्स को उनके उच्च प्रदर्शन के साथ प्रतिस्पर्धी बिजली रूपांतरण क्षमता के लिए जाना जाता है। लेकिन, अन्य प्रमुख विकल्पों की तुलना में उनकी स्थिरता सीमित है। हमारा मुख्य उद्देश्य इसकी दक्षता में सुधार करना, और जितना संभव हो सके पेरोव्स्काइट सौर सेल के निर्माण की लागत को कम करना है।”

प्रोफेसर सतपथी आगे कहते हैं कि "हमारे द्वारा विकसित पेरोव्स्काइट सोलर सेल कम लागत वाले हैं, और सिलिकॉन सोलर सेल के विकल्प के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं। यह आईआईटी रुड़की में विशेष रूप से विकसित पहला प्रोटोटाइप सोलर सेल भी है।”

आईआईटी रुड़की के डीन ऑफ स्पॉन्सर्ड रिसर्च ऐंड इंडस्ट्रियल कंसल्टेंसी; प्रोफेसर अक्षय द्विवेदी बताते हैं कि पेरोव्स्काइट सोलर सेल (पीएससी) का बाजार वर्ष 2030 तक बढ़कर 07 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है। इस अध्ययन से पीएससी उद्योग को बढ़ने में मदद मिल सकती है।

आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर के.के. पंत ने कहा, "दुनियाभर में कार्बन-तटस्थ अर्थव्यवस्था की माँग बढ़ रही है। पिछले दशक में पेरोव्स्काइट सोलर सेल (पीएससी) एक संभावित कम लागत वाली फोटोवोल्टिक तकनीक के रूप में उभरी है। आईआईटी रुड़की में विकसित पीएससी कुशल और स्थिर सोलर सेल विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

आईआईटी रुड़की के भौतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सौमित्र सतपथी के नेतृत्व में किये गए इस अध्ययन में आईआईटी रुड़की की शोधार्थी युक्ता शामिल हैं। इस अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं का प्रयास किफायती और अधिक प्रभावी पेरोव्स्काइट विकसित करने का रहा है। यह अध्ययन शोध पत्रिका एसीएस एप्लाइड एनर्जी मैटेरियल्स में प्रकाशित किया गया है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/IIT-Roorkee/HIN/20/12/2022