भारतीय जैव विविधता पर विदेशी खरपतवार का हमला

उमाशंकर मिश्र

विदेशी आक्रमणकारियों से देश की सीमाओं को ही खतरा नहीं होता, बल्कि जैव विविधता भी उनके निशाने पर हो सकती है। ये आक्रमणकारी कुछ इस तरह से जैव विविधता पर हमला बोलते हैं कि किसी को पता भी नहीं चलता। ऐसा ही एक विदेशी आक्रमणकारी पौधा लुडविगिया पेरूविया असम के धनसीरी नदी के जलग्रहण क्षेत्र और कोपिली नदी के पूर्वी हिस्सेे में स्थित स्थाणनीय जैव विविधता के लिए अब खतरा बन गया है। एक ताजा अध्यनयन के बाद भारतीय शोधकर्ताओं ने अब पूर्वोत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में भी लुडविगिया पेरूविया के फैलने की आशंका जताई है। असम के कृषि विज्ञान विभाग, असम कृषि विश्व्विद्यालय के कृषि मौसम विज्ञान विभाग और तिनसुकिया स्थित गैर सरकारी संस्थाज ‘एवरग्रीन अर्थ’ के संयुक्तम अध्य्यन में यह खुलासा हुआ है।

आठ से दस साल के अंतराल पर स्था,नीय वनस्पकतियों के सर्वेक्षण के बाद अध्येयनकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। यह अध्यियन कार्बी आंगलोंग और उससे सटे नगांव जिले में किया गया है, जहां धनसीरी और कोपिली नदियों का जलग्रहण क्षेत्र स्थित है। अध्यऔयनकर्ताओं के अनुसार उस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में स्थालनीय जैव विविधता मौजूद है, पर वहां यह खरपतवार अब तेजी से फैल रहा है। करीब 500 वर्ग किलोमीटर इलाके में यह अध्यियन किया गया था, जो 1220 वर्ग किलोमीटर में फैले जलग्रहण क्षेत्र का हिस्साब है। यह अध्य्यन हाल में करंट साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है। अध्यंयनकर्ताओं की टीम में ईश्वमरचंद्र बरुआ, जयंत डेका, मिताली देवी, राजीब एल. डेका और जनमोनी मोरान शामिल हैं। लुडविगिया पेरूविया को प्रिमरोज विलो भी कहते हैं, जो मूल रूप से मध्य एवं दक्षिण अमेरिका की वनस्पेति है। इसका फूल हल्केर पीले रंग का होता है और पौधे की ऊंचाई 12 फीट तक होती है। यह एक जलीय पौधा है, जो अब दुनिया भर के विभिन्नस दलदली क्षेत्रों में एक खरपतवार के रूप में स्थारनीय वनस्प्तियों के अस्तित्व। को चुनौती दे रहा है।

आर्द्रभूमि पानी से संतृप्त नम भूभाग को कहते हैं, जो जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील होता है। विशेष प्रकार की वनस्पतियां ही आर्द्रभूमि में उगने और उस पर फलने-फूलने के लिए अनुकूलित होती हैं। आक्रमणकारी लुडविगिया पेरूविया पहले ही दलदली भूमि के पादप समुदाय को काफी नुकसान पहुंचा चुका है। खनिज लवण से युक्तल नम बलुई मिट्टी ने इस खरपतवार को फलने-फूलने के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया कराया है। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक ‘ इस खरपतवार के कारण प्राकृतिक जलमार्गों में अवरोध, तलछट के जमाव में वृद्धि और कार्बनिक पदार्थों के संचय के परिणामस्वारूप पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिसके कारण ताजा पानी में रहने वाले जीवों के लिए संकट खड़ा हो जाता है। करीब 700 वर्ग किलोमीटर में फैली पांस भूमि (पीटलैंड) के पारिस्थितिक तंत्र में मौजूद पौधों के लिए लुडविगिया पेरूविया गंभीर चुनौती पेश कर रही है।’ पांस नम भूमि में पैदा होने वाली एक प्रकार की घास को कहते हैं, जिसे सुखाकर ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।

“असम के कार्बी आंगलोंग जिले में पहली बार 1993 में इस खरपतवार को देखा गया था। वर्ष 2008 तक तो यह बिखरा हुआ था, लेकिन हाल के वर्षों में कार्बी आंगलोंग और उसके तराई क्षेत्र में इसका प्रभाव तेजी से बढ़ा है। पूर्वोत्तूर राज्योंय के अलावा तमिलनाडु, केरल, अंडमान और पश्चिम बंगाल में भी यह खरपतवार फैल रहा है। ”,

अध्यधयनकर्ताओं के मुताबिक लुडविगिया पेरूविया नम क्षेत्रों में अन्य हानिकारक खरपतवारों के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ता है। मानसून पूर्व का तापमान और मानसून की बारिश इस खरपतवार को तेजी से बढ़ने में मदद करती है। यह आक्रमणकारी पौधा ईकोटोन जोन में स्थाेनीय वनस्पकतियों को स्थाऔनांतरित करके अपनी जगह बना चुका है और सामान्यम खाद्य श्रृंखला को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। ईकोटोन जोन दो समीपवर्ती परितंत्रों के मध्य एक संक्रमण-क्षेत्र को कहते हैं, जहां पौध समुदाय बढ़ते हैं और परिवर्तित होने के बजाय प्राकृतिक तौर पर एकीकृत हो जाते हैं।

लुडविगिया पेरूविया से प्रभावित पूर्वोत्त र के इन क्षेत्रों में विभिन्ना प्रजातियों के पक्षी रहते हैं, जानवर चरने के लिए आते हैं और जलमार्ग भी है, जो भविष्यि में इस खरपतवार के अन्यप क्षेत्रों में फैलने के लिए पर्याप्ति परिस्थितयां मुहैया कराते हैं। अध्यइयनकर्ताओं के मुताबिक समस्यां की गंभीरता को देखते हुए इस खरपतवार के प्रबंधन के लिए शीघ्र प्रभावी रणनीति बनाए जाने की जरूरत है। (India Science Wire)

Latest Tweets @Indiasciencewiret