सिक्किम को मिला पहला भूस्खलन निगरानी तंत्र                                                                 

चांदमरी गांव में स्थापित भूस्खलन चेतावनी प्रणाली

सिक्किम में भूस्खलन की रियल टाइम निगरानी के लिए पहली बार चेतावनी तंत्र स्थापित किया गया है। भूस्खलन के लिए संवेदनशील माने जाने वाले उत्तर-पूर्वी हिमालय क्षेत्र में स्थापित यह प्रणाली समय रहते भूस्खलन के खतरे की जानकारी दे सकती है, जिससे जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

उत्तर-पूर्वी हिमालय क्षेत्र की सिक्किम-दार्जिलिंग पट्टी में स्थापित इस चेतावनी प्रणाली में 200 से अधिक सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर वर्षा, भूमि की सतह के भीतर छिद्र दबाव और भूकंपीय गतिविधियों समेत विभिन्न भूगर्भीय एवं हाइड्रोलॉजिकल मापदंडों की निगरानी करते हैं। यह प्रणाली भूस्खलन से पहले ही सचेत कर देती है, जिससे स्थानीय लोगों को आपदा से पहले उस स्थान से सुरक्षित हटाया जा सकता है।

सिक्किम की राजधानी गंगतोक के चांदमरी गांव में यह प्रणाली 150 एकड़ में स्थापित की गई है जो आसपास के 10 किलोमीटर के दायरे में भूस्खलन की निगरानी कर सकती है। चांदमरी के आसपास का क्षेत्र जमीन खिसकने के प्रति काफी संवेदनशील है और पहले भी यहां भूस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं। हिमालय के भूविज्ञान को केंद्र में रखकर विकसित की गई यह चेतावनी प्रणाली इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) पर आधारित है। सिक्किम आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की पहल पर केरल के अमृता विश्वविद्यापीठम के शोधकर्ताओं द्वारा इस प्रणाली को विकसित किया गया है।

इस चेतावनी प्रणाली के अंतर्गत वास्तविक समय में निरंतर आंकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं। इन आंकड़ों का स्थानीय नियंत्रण केंद्र में बुनियादी विश्लेषण किया जाता है, और फिर उन्हें केरल के कोल्लम जिले में स्थित अमृता विश्वविद्यापीठम की भूस्खलन प्रयोगशाला के डाटा प्रबंधन केंद्र में भेज दिया जाता है।

इस प्रणाली से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा भूगर्भीय एवं जल विज्ञान की प्रकृति और पहाड़ी क्षेत्र की प्रतिक्रिया का अध्ययन करने के लिए किया जा रहा है ताकि भूस्खलन के प्रति संवेदनशील क्षेत्र के लिए प्रारंभिक चेतावनी मॉडल विकसित किया जा सके।


सिक्किम के चांदमरी गांव में पूर्व चेतावनी तंत्र स्थापित करते हुए शोधकर्ता

डॉ सुधीर के मुताबिक: "भारत में घातक भूस्खलन की घटनाएं अन्य देशों की अपेक्षा अधिक होती हैं। पश्चिमी घाट और कोंकण हिल्स, पूर्वी घाट, उत्तर-पूर्वी हिमालय और उत्तर-पश्चिमी हिमालय जैसे क्षेत्रों में भारत की 15 प्रतिशत भूमि भूस्खलन के खतरे के प्रति संवेदनशील है। "

इस परियोजना से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉ मनीषा सुधीर ने बताया कि “यह नई चेतावनी प्रणाली भूस्खलन से 24 घंटे पूर्व चेतावनी जारी कर सकती है। स्थानीय स्तर पर स्थापित की जाने वाली यह प्रणाली विभिन्न प्रकार के सेंसरों पर आधारित है। इन सेंसरों को ड्रिल करके जमीन के भीतर पाइप की मदद से स्थापित किया जाता है। यह प्रणाली सौर ऊर्जा से संचालित होती है और सौर ऊर्जा के भंडारण के लिए परियोजना स्थल पर बैटरियां लगायी गई हैं।"

शोधकर्ताओं के अनुसार, वर्षा सीमा पर आधारित मॉडल, इन-सीटू सेंसर-आधारित निगरानी प्रौद्योगिकी, इंटरफेरोमेट्रिक सिंथेटिक एपर्चर रडार आधारित तकनीक, जमीन आधारित रडार प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रिकल रेजिस्टिविटी टोमोग्राफी और उपग्रह छवियों के जरिये भूस्खलन का अनुमान लगाया जा सकता है। यह बहुस्तरीय चेतावनी प्रणाली है जो आपदा प्रबंधन अधिकारियों को संभावित भूस्खलन के खतरों को कम करने और उसके प्रबंधन करने के लिए प्रभावी कदम उठाने में मददगार हो सकती है। यह प्रणाली दुनियाभर में भूस्खलन की निगरानी के लिए आमतौर पर उपयोग होने वाले रेनफॉल थ्रेसाल्ड मॉडल से अधिक प्रभावी पायी गई है।

सिक्किम का 4,895 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है, जिसमें से 3,638 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मानव आबादी, सड़क और अन्य बुनियादी ढांचे से घिरा हुआ है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह प्रणाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है जिसे विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित करके विस्तृत में भूक्षेत्र में भूस्खलन की निगरानी की जा सकती है।

डॉ सुधीर के मुताबिक, “भारत में घातक भूस्खलन की घटनाएं अन्य देशों की अपेक्षा अधिक होती हैं। पश्चिमी घाट और कोंकण हिल्स, पूर्वी घाट, उत्तर-पूर्वी हिमालय और उत्तर-पश्चिमी हिमालय जैसे क्षेत्रों में भारत की 15 प्रतिशत भूमि भूस्खलन के खतरे के प्रति संवेदनशील है। उत्तर-पूर्व हिमालय क्षेत्र में, सिक्किम-दार्जिलिंग पट्टी में भूस्खलन का सबसे अधिक खतरा है। यही कारण है कि हमने हमारी भूस्खलन पहचान प्रणाली स्थापित करने के लिए इस क्षेत्र को चुना है।’’

वैज्ञानिकों के अनुसार, भूकंपीय कंपन, लंबे समय तक बारिश और पानी का रिसाव भूस्खलन का कारण हो सकते हैं। ढलानों से पेड़-पौधों की कटाई, प्राकृतिक जल निकासी में हस्तक्षेप, पानी या सीवर पाइप के लीकेज, निर्माण कार्यों और यातायात से होने वाले कंपन जैसे मानवीय कारण भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।

डॉ सुधीर के अनुसार, “लोगों को भूस्खलन और जोखिमों के बारे में शिक्षित करना जरूरी है। आम लोगों और सरकारी संगठनों से भूस्खलन की संभावना के बारे में डाटा इकट्ठा करने के लिए सोशल मीडिया और मोबाइल फोन ऐप्स भी विकसित किए जा सकते हैं।”

अमृता विश्व विद्यापीठम के उप कुलपति डॉ. वेंकट रंगन ने बताया कि “अमृता विश्व विद्यापीठम द्वारा सिक्किम में लगाई गई यह प्रणाली भारत में ऐसी दूसरी प्रणाली है। इससे पूर्व केरल के मुन्नार जिले में इस तरह की प्रणाली लगाई जा चुकी है, जो कई सफल चेतावनियां जारी कर चुकी है। इस चेतावनी तंत्र को स्थापित करने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और अमृता विश्वविद्यापीठम द्वारा वित्तीय मदद दी गई है।” (इंडिया साइंस वायर)