...भौतिक-विज्ञानी सत्येन्द्र नाथ बोस (1 जनवरी, 1894 - 4 फरवरी, 1974) के 125वें जन्मदिन पर विशेष फीचर

क्वांटम भौतिकी को नयी दिशा देने वाले वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस                                                                 

धुनिक भौतिक विज्ञान को एक नयी दिशा देने वाले भारतीय भौतिक वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर साल भर चलने वाले कार्यक्रम की शुरुआत आज कोलकाता में की गई। कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये किया।

बोस को क्वांटम भौतिकी में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। क्वांटम भौतिकी में उनके अनुसंधान ने ‘बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी’ और ‘बोस-आइंस्टीन संघनन’ सिद्धांत की आधारशिला रखी। भौतिक विज्ञान में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं- बोसोन और फर्मियान। इनमें से बोसोन सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही हैं। क्वांटम भौतिकी में उनके अनुसंधान ने इस विषय को एक नयी दिशा प्रदान की और उनके खोज पर आधारित नयी खोज करने वाले कई वैज्ञानिकों को आगे जाकर नोबेल पुरस्कार भी मिला।

उत्तरी कलकत्ता में 1 जनवरी, 1894 को जन्मे सत्येन्द्र नाथ बोस ने विज्ञान के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण शोध-कार्यों के जरिये भारत को विश्व पटल पर लाकर खड़ा कर दिया। इस महान वैज्ञानिक का नाम अपने कार्यों के कारण अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ भी जुड़ा है। उन्नीसवीं सदी के अंत तथा बीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में काफी उथल-पुथल मची हुई थी। कृष्णपिंड यानी ब्लैकबॉडी विकिरण के गहराई से अध्ययन ने उलझनें बढ़ा दी थीं। ब्लैकबॉडी किसी भी ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्लैंक ने बताया कि ऊर्जा को तब तक अवशोषित या निष्कासित नहीं किया जा सकता, जब तक उसकी न्यूनतम मात्रा न हो, जिसे ‘क्वान्टम’ कहते हैं।

वर्ष 1905 में आइंस्टीन ने विश्व को इस क्रांति के दूसरे चरण से परिचय कराया। प्लैंक सिद्धांत के एक बेहतरीन विश्लेषण में उन्होंने दिखाया कि प्रकाश के दूरी तय करने के माध्यम दो प्रकार के हैं, जो तरंग तथा छोटी गोलियों के समान कण हैं। आज हम इन्हें फोटोन कहते हैं। उन्होंने साबित किया कि यह सिद्धांत प्रकाशवैद्युत प्रभाव यानी फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट की सटीक व्याख्या करता है। जब प्रकाश धातु पर पड़ता है तो इलेक्ट्रानों का उत्सर्जन होता है। उनकी संख्या प्रकाश की चमक पर निर्भर करती है और प्रकाश जैसे-जैसे नीला होता है, उनकी ऊर्जा बढ़ने लगती है। पारंपरिक सिद्धांत में इसकी व्याख्या नहीं थी। इस प्रकार प्रसिद्ध तरंग-कण द्वैत सिद्धांत का आरंभ हुआ।

"जल्दी ही बोस ने एक नया सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसमें पहले भाग समेत पूरा प्लैंक नियम क्वांटम सिद्धांत पर आधारित था। उन्होंने सिद्धांत दिया कि फोटोन गोलियों की तरह नहीं हैं, जैसी आइंस्टीन ने कल्पना की थी"

कुछ वैज्ञानिकों ने बताया कि आइंस्टीन की गोलियों के समान फोटोन का सिद्धांत प्लैंक के सिद्धांत का पालन नहीं करता। यह बात आइंस्टीन के लिए चौंकाने वाली थी। जो गतिविधि प्लैंक के सिद्धांत का अनुसरण कर रही है, वह उसका विरोध कैसे कर सकती थी? आइंस्टीन के सिद्धांत में यह खामी थी। इस खामी के कारण प्लैंक के नियम के संतोषजनक व्याख्या की कई कोशिशें शुरू हो गईं।

भौतिक विज्ञान की ऐसी स्थिति के साथ बोस ने ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी पढ़ाना आरंभ किया। शिक्षण में उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने पाया कि ये सभी सिद्धांत एक आधारभूत तार्किक अशुद्धि का शिकार हैं।

जल्दी ही बोस ने एक नया सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसमें पहले भाग समेत पूरा प्लैंक नियम क्वांटम सिद्धांत पर आधारित था। उन्होंने सिद्धांत दिया कि फोटोन गोलियों की तरह नहीं हैं, जैसी आइंस्टीन ने कल्पना की थी, बल्कि काफी हद तक बिखरे हुए हैं, जिसका अर्थ है कि उनकी गणना अलग तरह से होनी चाहिए, न कि गोलियों या बिलियर्ड्स के बॉल की तरह। यह सिद्धांत एक नई सांख्यिकी की शुरुआत थी, जिसे क्वान्टम सांख्यिकी कहते हैं।

प्लैंक नियम के नए आयाम पर बोस ने अपना शोध “प्लैंकस लॉ ऐंड लाइट क्वांटम” इंग्लैंड की फिलॉसोफिकल पत्रिका में छपने के लिए भेजा। लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया। तब उन्होंने इसे आइंस्टीन को एक पत्र के साथ भेजा, जिसमें उन्होंने अपने शोध की व्याख्या की और आइंस्टीन से अपना शोध किसी पत्रिका में छपवाने का अनुरोध किया। आइंस्टीन इस शोध से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने स्वयं इस शोध का जर्मन भाषा में अनुवाद किया और इसे ‘जीट फर फिजिक’ नामक जर्नल में प्रकाशित कराया। इसके बाद दोनों महान वैज्ञानिकों ने विज्ञान के अनेक सिद्धांतों पर साथ कार्य किया।

इसके बाद बोस ने अपना एक और शोधपत्र ‘फिजिक्स जर्नल’ में प्रकाशनार्थ भेजा। इस पत्र में फोटोन जैसे कणों में ‘मैक्सवेल-बोल्ट्ज्मैन नियम’ लागू करने पर त्रुटि होने की ओर संकेत किया गया था। बोस ने एक बार फिर इस शोधपत्र को आइंस्टीन के पास भेजा। आइंस्टीन ने इस पर कुछ और शोध करते हुए संयुक्त रूप से ‘जीट फर फिजिक’ शोध पत्रिका में प्रकाशित कराया। इस शोधपत्र ने क्वांटम भौतिकी में ‘बोस-आइंस्टीन सांख्यकी’ नामक एक नई शाखा की बुनियाद रखी। इसके द्वारा सभी प्रकार के बोसोन कणों के गुणधर्मों का पता लगाया जा सकता है। बोस- आइंस्टीन सांख्यिकी का पालन करने वाले कणों को पॉल डिराक द्वारा उनका नाम बोसोन दिया गया था।

नवंबर, 1925 में बोस बर्लिन गए जहां आइंस्टीन से उनकी पहली बार मुलाकात हुई। वर्ष 1926 में वह ढाका लौटने पर उन्हें भौतिकी विभाग में प्रोफेसर नियुक्त किया गया। उन्होंने भौतिक विज्ञान विभाग को मजबूत किया और वहां एक एक्स-रे क्रिस्टल विज्ञान प्रयोगशाला स्थापित की। उन दिनों वैज्ञानिक शोध के लिए धन इकट्ठा करना आसान नहीं था। ऐसे में उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय में यांत्रिकी विभाग की मदद से अपने लिए एक्स-रे क्रिस्टल विज्ञान प्रयोगशाला बनायी और कई कैमरे तैयार किये।

वर्ष 1960 में जब कण भौतिकी का मानक नमूना विकसित किया जा रहा था तो एक समस्या खड़ी हो गई। सिद्धांत के मुताबिक सभी कणों में द्रव्यमान नहीं होना था। लेकिन उस स्थिति में वे प्रकाश की गति से चलते थे और किसी ठोस पदार्थ का गठन नहीं होता था। इसलिए एक नए तरह के कण की आवश्यकता थी जो सभी कणों को द्रव्यमान देता हो और जिससे ब्रह्मांड का गठन होता। वह नया कण बोसोन था। इसका नाम एडिनबर्ग के पीटर हिग्स के नाम पर हिग्स बोसोन रखा गया। शोध चलते रहे और आखिरकार जुलाई, 2012 में सर्न के विशाल प्रयोग लॉर्ज हैड्रॉन कोलाइडर यानी एलएचसी में हिग्स बोसोन की पुष्टि की गई।

बोस-आइंस्टीन संघनित पदार्थ की ऐसी अवस्था होती है, जिसमें बोसोन की तनु गैस को परम शून्य तापमान यानी शून्य डिग्री केल्विन के बहुत निकट के ताप तक ठंडा कर दिया जाता है। इस स्थिति में अधिकांश बोसोन निम्नतम क्वांटम अवस्था में होते हैं और क्वांटम प्रभाव स्थूल पैमाने पर भी दिखने लगते हैं। इन प्रभावों को 'स्थूल क्वांटम परिघटना' कहा जाता है। पदार्थ की इस अवस्था की सबसे पहली भविष्यवाणी वर्ष 1924-25 में सत्येन्द्रनाथ बोस ने की थी। किन्तु बाद में किये गये प्रयोगों से जटिल अन्तर-क्रिया का पता चला।

मुंबई के टाटा मूलभूत अनुसंधान केंद्र की प्रयोगशालाओं में बोस-आइंस्टीन संघनन, अति-तरलता और अति-चालकता पर शोध हो रहे हैं। सत्येन्द्र नाथ बोस बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। चित्रकारी, ललित कला और संगीत से उन्हें विशेष प्रेम था। बोस इसराज और बांसुरी बजाया करते थे। बोस के संगीत प्रेम का दायरा लोक संगीत, भारतीय संगीत से लेकर पाश्चात्य संगीत तक फैला हुआ था। बोस के मित्र प्रोफेसर धुरजटी दास बोस जब भारतीय संगीत पर पुस्तक लिख रहे थे तो बोस ने उन्हें काफी सुझाव दिए। प्रोफेसर दास के अनुसार बोस यदि वैज्ञानिक नहीं होते तो वह एक संगीत गुरू होते।

रविन्द्रनाथ टैगोर से प्रेरित होकर उन्होंने वर्ष 1948 में उत्तरी कोलकाता में बंगीय विज्ञान परिषद का गठन किया ताकि आम लोगों में बुनियादी वैज्ञानिक ज्ञान की जानकारी उनकी भाषा में दी जा सके। बोस सदैव जनभाषा में विज्ञान की शिक्षा के समर्थक रहे। सत्येन्द्र नाथ बोस के 125वें जन्मदिवस के मौके पर कोलकाता स्थित सत्येंद्र नाथ बसु राष्ट्रीय मौलिक विज्ञान केंद्र में वर्ष 2018 में साल भर विभिन्न वैज्ञानिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। (India Science Wire)