जलवायु अनुकूलन के लिए जरूरी जन-भागीदारी                                                                 

लवायु परिवर्तन का सामना करने और इससे जुड़ी चुनौतियों के साथ अनुकूलन स्थापित करने के लिए भू-जलविज्ञानियों, सरकारी एजेंसियों और स्थानीय समुदायों के बीच परस्पर समन्वय स्थापित करने और साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), इंदौर और आईआईटी, गुवाहाटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात उभरकर आई है।

नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं, सलाहकारों, स्थानीय शिक्षाविदों, विकास एजेंसियों और किसानों के साक्षात्कार के आधार पर अध्ययनकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। यह अध्ययन पूर्वोत्तर भारत के सिक्किम में किया गया है।

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि भू-जलविज्ञानियों, सरकारी एजेंसियों और स्थानीय समुदायों के बीच बेहतर तालमेल को बढ़ावा देने की जरूरत है। ऐसा करने से जलवायु परिवर्तन से संबंधित सूखे एवं बाढ़ जैसी चरम स्थितियों और जल सुरक्षा के बारे में समझ विकसित करने और उससे निपटने लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने में मदद मिल सकती है।

इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ता डॉ मनीष कुमार गोयल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “आमतौर पर जलवायु अनुकूलन से जुड़ी रणनीतियां प्रभावी नहीं हो पातीं। इन रणनीतियों के विफल होने के लिए मुख्य रूप से तीन कारणों की पहचान इस अध्ययन में की गई है। प्रभावित समुदायों की आवश्यकताओं के बारे में पर्याप्त समझ की कमी, शोधकर्ताओं एवं नीति निर्माताओं द्वारा चिह्नित अनुकूलन रणनीतियों को समझने एवं उन्हें अपनाने में समुदायों की अक्षमता और धन के अभाव को इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार पाया गया है।”

" जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के जिन हिस्सों में जल सुरक्षा के गंभीर रूप से प्रभावित होने की आशंका है, वहां शोध, नीति निर्माण और अनुकूलन कायम करने के प्रयासों के बीच अंतर को कम करना चुनौती बनी हुई है। "

डॉ गोयल के मुताबिक “जलवायु अनुकूलन स्थापित करने के लिए स्थानीय समुदायों को सक्षम बनाने के प्रयास एवं रणनीतियां आमतौर पर शोध-आधारित निर्णयों पर आधारित होती हैं। इन निर्णयों में निर्धारित की गई रणनीतियों एवं तकनीकों के बारे में उम्मीद की जाती है कि स्थानीय समुदाय उन्हें अपनाएंगे और उन पर अमल करेंगे। पर, ये रणनीतियां कारगर नहीं हो पातीं। जलवायु परिवर्तन की चरम स्थितियों में ही नहीं, बल्कि जल सुरक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी स्थानीय समुदायों को सक्षम बनाए जाने की जरूरत है। अध्ययन के नतीजे जलवायु अनुकूलन स्थापित करने संबंधी कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं को अधिक प्रभावी बनाने में मददगार हो सकते हैं।”

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के जिन हिस्सों में जल सुरक्षा के गंभीर रूप से प्रभावित होने की आशंका है, वहां शोध, नीति निर्माण और अनुकूलन कायम करने के प्रयासों के बीच अंतर को कम करना चुनौती बनी हुई है। इस अंतर को पाटने के लिए कई तरह प्रयास दुनिया भर में किए जा रहे हैं। यह अध्ययन इसी दिशा में किया गया एक प्रयास माना जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद द्वारा वर्ष 2008 में बनाए गए राष्ट्रीय एक्शन प्लान और जलवायु परिवर्तन से संबंधित वर्ष 2012 में बने सिक्किम स्टेट एक्शन प्लान के संदर्भ में देखें तो यह अध्ययन उपयोगी हो सकता है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अनुदान प्राप्त यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंस ऑफ दि टोटल एन्वायरमेंट में प्रकाशित किया गया है। अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ मनीष गोयल के अलावा आईआईटी, गुवाहाटी के शोधकर्ता अदानी अझोनी शामिल थे। (India Science Wire)