जल प्रदूषण दूर करने में मददगार हो सकता है प्लास्टिक कचरा                                                                 

प्लास्टिक कचरे के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए पुनर्चक्रण करके उसका दोबारा उपयोग करना ही सबसे बेहतर तरीका माना जाता है। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने पानी को शुद्ध करने के लिए प्लास्टिक कचरे के उपयोग का एक नया तरीका खोज निकाला है।

लखनऊ स्थित भारतीय विष-विज्ञान अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक कचरे से चुंबकीय रूप से संवेदनशील ऐसी अवशोषक सामग्री तैयार की है, जिसका उपयोग पानी से सीफैलेक्सीन नामक जैव प्रतिरोधक से होने वाले प्रदूषण को हटाने में हो सकता है।

वैज्ञानिकों ने पॉलिएथलीन टेरेफ्थैलेट (पीईटी) के कचरे को ऐसी उपयोगी सामग्री में बदलने की प्रभावी रणनीति तैयार की है, जो पानी में जैव-प्रतिरोधक तत्वों के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकती है। इस तकनीक से प्लास्टिक अपशिष्ट का निपटारा होने के साथ-साथ जल प्रदूषण को भी दूर किया जा सकेगा।

" वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए कम लागत वाले इस नए चुंबकीय नैनो-मैटेरियल में प्रदूषित पानी से सीफैलेक्सीन को सोखने की बेहतर क्षमता है। "

अध्ययनकर्ताओं में शामिल डॉ प्रेमांजलि राय ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “आसपास के क्षेत्रों से पीईटी रिफ्यूज एकत्रित कर नियंत्रित परिस्थितियों में उन्हें कार्बनीकरण एवं चुंबकीय रूपांतरण के जरिये चुंबकीय रूप से संवेदनशील कार्बन नैनो-मैटेरियल में परिवर्तित किया गया है।”

डॉ राय के अनुसार “वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए कम लागत वाले इस नए चुंबकीय नैनो-मैटेरियल में प्रदूषित पानी से सीफैलेक्सीन को सोखने की बेहतर क्षमता है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि प्रति लीटर पानी में इस अवशोषक की 0.4 ग्राम मात्रा का उपयोग करने से सीफैलेक्सीन की आधे से अधिक सांद्रता को कम कर सकते हैं।”

वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक मात्रा में दवाओं के उपयोग और वातावरण में उनके निपटान से संदूषण और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा मिल रहा है। बड़े पैमाने पर उपयोग होने वाली जैव-प्रतिरोधी दवा सीफैलेक्सीन को भी वातावरण को प्रदूषित करने वाले सूक्ष्म प्रदूषक के रूप में जाना जाता है। इसी तरह प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है। प्लास्टिक के जलने से कई तरह की खतरनाक गैसें और कैंसरकारी तत्व वातावरण में घुल जाते हैं, वहीं इसे जमीन में दबाने से भी मिट्टी एवं भूमिगत जल में जहरीले तत्वों का रिसाव शुरू हो जाता है।

इस नए विकसित अवशोषक में प्रदूषकों को सोखने की काफी क्षमता है और इसका पुन: उपयोग किया जा सकता है। यही कारण है कि इसे सूक्ष्म प्रदूषकों की समस्या से निपटने के लिए कारगर माना जा रहा है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इस खोज से अपशिष्ट प्रबंधन की गैर-अपघटन आधारित नवोन्मेषी रणनीतियां विकसित करने में मदद मिल सकती है।

यह अध्ययन जर्नल ऑफ एन्वायरमेंटल मैनेजमेंट में प्रकाशित किया गया है। अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ प्रेमांजलि राय के अलावा डॉ कुंवर पी. सिंह भी शामिल थे। (India Science Wire)


भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र