सदी के अंत तक पिघल सकते हैं एक-तिहाई ग्लेशियर                                                                 

      

नेपाल के खुम्बू में पिघलते हुए ग्लेशियर (फोटो : एलेक्स ट्रीडवे, आईसीआईएमओडी)

ग्लोबल वार्मिंग कम करने से जुड़े पेरिस समझौते के अनुसार वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने में सफलता मिलने के बावजूद हिमालय के हिन्दु कुश क्षेत्र के तापमान में 2.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी हो सकती है। इसके चलते इस क्षेत्र में स्थित एक-तिहाई ग्लेशियर पिघल सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रयास विफल होते हैं तो स्थिति अधिक गंभीर हो सकती है। ऐसे में तापमान पांच डिग्री तक बढ़ सकता है और हिन्दु कुश क्षेत्र के दो-तिहाई ग्लेशियर पिघल सकते हैं।

ये निष्कर्ष इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) द्वारा किए गए अध्ययन में उभरकर आए हैं। भारत समेत 22 देशों के 350 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्ययन सोमवार को काठमांडू में जारी किया गया है।

पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 25 करोड़ लोगों के साथ-साथ निचले भागों में स्थित (भारत और इसके आसपास के देशों) की नदी घाटियों की करीब 1.65 अरब आबादी के लिए ये ग्लेशियर महत्वपूर्ण जल स्रोत माने जाते हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से इस क्षेत्र में जल संकट गंभीर हो सकता है।


याला ग्लेशियर पर स्थापित स्वचालित मौसम स्टेशन (फोटो : जीतेन्द्र बज्राचार्य, आईसीआईएमओडी)

" ग्लेशियरों के पिघलने से वायु प्रदूषण से लेकर चरम मौसमी की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। मानसून पूर्व नदियों के प्रवाह में कमी और मानसून में बदलाव के कारण शहरी जल प्रणाली, खाद्य एवं ऊर्जा उत्पादन भी बड़े पैमाने पर प्रभावित हो सकता है। "

आईसीआईएमओडी से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता फिलिप वेस्टर के मुताबिक, "यह क्षेत्र पहले ही दुनिया के सबसे कमजोर और आपदाओं के प्रति संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यहां ग्लेशियरों के पिघलने से वायु प्रदूषण से लेकर चरम मौसमी की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। मानसून पूर्व नदियों के प्रवाह में कमी और मानसून में बदलाव के कारण शहरी जल प्रणाली, खाद्य एवं ऊर्जा उत्पादन भी बड़े पैमाने पर प्रभावित हो सकता है।”

आईसीआईएमओडी द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति में बताया गया है कि “इस पर्वतीय क्षेत्र का गठन करीब सात करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है और यहां मौजूद ग्लेशियर बदलती जलवायु के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। पिछले करीब पांच दशकों से यहां पायी जाने वाली बर्फ का दायरा लगातार सिकुड़ रहा है, बर्फ का द्रव्यमान पतला हुआ है और बर्फ की मात्रा में भी कमी आयी है। इन परिवर्तनों का प्रभाव पूरे क्षेत्र में देखा गया है।”

ग्लेशियरों के पिघलने से हिमनदों से बनी झीलों का आकार और उनकी संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है और इन झीलों के ढहने से भयानक बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। हिन्दु कुश में बर्फ पिघलने से गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी नदी घाटियों में खेती तबाह हो सकती है। दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में शामिल गंगा के मैदान से निकलने वाले वायु प्रदूषकों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। इन प्रदूषकों से निकलने वाला कार्बन और सूक्ष्म कण ग्लेशियरों पर जमा हो जाते हैं, जो ग्लेशियरों के पिघलने, मानसून के प्रसार और वितरण को प्रभावित करते हैं।

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इन परिवर्तनों का सबसे अधिक असर इस क्षेत्र के गरीबों पर पड़ेगा। हिन्दु कुश हिमालय क्षेत्र की 25 करोड़ की आबादी में से एक तिहाई लोगों की दैनिक आमदनी करीब 136 रुपये है। इस क्षेत्र की 30 प्रतिशत से अधिक आबादी के पास पर्याप्त भोजन नहीं है और लगभग 50 प्रतिशत लोग कुपोषण के किसी न किसी रूप का सामना कर रहे हैं, जिससे महिलाएं और बच्चे सबसे अधिक पीड़ित हैं। रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र के संसाधनों, जैसे- जल विद्युत क्षमता का बेहतर उपयोग करके लोगों की आय में सुधार किया जा सकता है।
इंडिया साइंस वायर