नदियों में प्रदूषण की निगरानी के लिए मिला नया तरीका                                                                 

वाई रिमोट सेंसिंग से भी नदियों में प्रदूषण के स्तर का पता लगाया जा सकता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर द्वारा विकसित प्रदूषण निगरानी की एक ऐसी ही तकनीक से गंगा नदी के जल की गुणवत्ता का पता लगाने में के वैज्ञानिकों को आरंभिक सफलता मिली है।

इस अध्ययन के दौरान मोनोक्रोम सेंसर युक्त चार कैंमरों को एक छोटे एयरक्राफ्ट पर लगाया गया था। वैज्ञानिकों ने नदी में प्रदूषकों की मौजूदगी को दर्शाने वाले परावर्तित प्रकाश के तरंगदैर्ध्य को पृथक करने के लिए खास ऑप्टिकल फिल्टर्स और आंकड़ों का उपयोग किया है। आभासी वर्ण संयोजन (फाल्स कलर कम्पोजिट) विधि की मदद से नदी के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद तलछट या गाद के घनत्व का पता लगाने में भी वैज्ञानिक सफल हुए हैं।

इस अध्ययन से जुड़े आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक प्रोफेसर राजीव सिन्हा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “हमारी टीम ड्रोन पर कैमरा लगाकर मल्टी-स्पेक्ट्रल और हाइपर-स्पेक्ट्रल इमेजिंग तकनीक की मदद से गंगा में प्रवाहित किए जा रहे प्रदूषकों की प्रकृति और विशेषताओं का पता लगाने के लिए काम कर रही है। यह फिलहाल कम बजट की एक परियोजना थी। अगर संसाधन हों तो वैज्ञानिक अधिक शक्तिशाली कैमरों की मदद से जलस्रोतों में जैविक, अजैविक और धात्विक प्रदूषण समेत विभिन्न प्रदूषण प्रकारों का भी पता लगा सकते हैं।”

वैज्ञानिक एक सॉफ्टवेयर विकसित करने की कोशिश में भी जुटे हैं, जिससे नदी के प्रदूषित क्षेत्र तथा स्वच्छ क्षेत्र के बीच गुणात्मक अंतर और प्रदूषण के स्रोत का पता लगाया जा सकेगा।

" नदियों में प्रदूषित जल आमतौर पर उसमें प्रवाहित होने वाले ठोस अपशिष्ट, रासायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी), जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और पीएच के ऊंचे स्तर प्रदर्शित करता है। "

नदियों में प्रदूषित जल आमतौर पर उसमें प्रवाहित होने वाले ठोस अपशिष्ट, रासायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी), जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और पीएच के ऊंचे स्तर प्रदर्शित करता है। प्रकाश के परावर्तन से जलस्रोतों में मौजूद प्रदूषण के घनत्व का पता लगाया जा सकता है क्योंकि जलस्रोतों में तरल की सतह से प्रकाश का परावर्तन उसमें मौजूद प्रदूषकों की मात्रा पर निर्भर करता है। प्रदूषकों का स्तर अधिक होने पर उन्हें नग्न आंख से भी देखा जा सकता है, पर प्रदूषणकारी तत्वों का घनत्व कम होने की स्थिति में ऐसा संभव नहीं हो पाता।

वैज्ञानिकों को अनुसार नदियों के जल की गुणवत्ता का पता लगाने वाले पारंपरिक तरीके अपर्याप्त हैं। भारत में नदियों का विस्तृत तंत्र होने के कारण रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग उनमें प्रदूषण निगरानी के लिए करना अधिक प्रभावी हो सकता है। इस तकनीक का उपयोग जलस्रोतों को प्रदूषित करने वाले रसायनिक तत्वों की पहचान और प्रदूषण के घनत्व का पता लगाने के लिए भी कर सकते हैं।

मौजूदा औद्यौगिक युग में वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी एक चुनौती बनकर उभर रहा है। गंगा मैदानी क्षेत्रों में बसे करीब 40 करोड़ लोगों के जीवन का आधार है। यह नदी भी लगातार प्रदूषित हो रही है। सब कुछ ठीक रहा तो भविष्य में नदियों को प्रदूषित करने के औद्योगिक इकाइयों के अपराध को रोका जा सकेगा।

अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं क्योंकि इसके जरिये नियमित निगरानी की मदद से प्रदूषकों के स्रोत का पता लगाया जा सकेगा और नदियों को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों पर नकेल कसी जा सकेगी। अध्ययनकर्ताओं में प्रोफेसर सिन्हा के साथ उनके शोध छात्र दीपरो सरकार भी शामिल थे। (India Science Wire)