ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में प्रदूषित हवा को साफ करने के लिए नया प्यूरीफायर                                                                 

धिक ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के कारण दूषित हवा को शुद्ध करने के लिए भारतीय शोधकर्ताओं ने एक नया प्यूरीफायर विकसित किया है। ऐसे दो उपकरण दिल्ली में दो स्थानों पर लगाए गए हैं। इसे विकसित करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्यूरीफायर को चौराहों और पार्किंग स्थलों जैसे क्षेत्रों में लगाकर प्रदूषित हवा को साफ किया जा सकता है।

यह उपकरण दो चरणों में कार्य करता है। पहले चरण में डिवाइस में लगा पंखा अपने आसपास की हवा को सोख लेता है और विभिन्न आयामों में लगे तीन फिल्टर धूल एवं सूक्ष्म कणों जैसे प्रदूषकों को अलग कर देते हैं। इसके बाद हवा को विशेष रूप से डिजाइन किए गए कक्ष में भेजा जाता है जहां टाइटेनियम लेपित सक्रिय कार्बन के उपयोग से हवा में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन्स तत्वों को कम हानिकारक कार्बन डाईऑक्साड में ऑक्सीकृत कर दिया जाता है। दो पराबैंगनी लैंपों के जरिये यह ऑक्सीकरण किया जाता है। अंततः तेज दबाव के साथ शुद्ध हवा को वायुमंडल में दोबारा प्रवाहित कर दिया जाता है ताकि बाहरी हवा में प्रदूषकों को कम किया जा सके।

वायु नाम इस प्यूरीफायर को वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की नागपुर स्थित प्रयोगशाला राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने विकसित किया है।


"इस उपकरणर में लगे फिल्टर गैर बुने हुए कपड़े से बने हैं जो सूक्ष्म कणों को 80-90 प्रतिशत और जहरीली गैसों को 40-50 प्रतिशत तक हटाने की क्षमता रखते हैं। "

वायु नामक इस उपकरण का प्रोटोटाइप मध्य दिल्ली में आईटीओ और उत्तरी दिल्ली में मुकरबा चौक में स्थापित किया गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने इस प्रोटोटाइप का अनावरण किया है। इस मौके पर उन्होंने कहा कि “अगले एक महीने में शहर के अन्य हिस्सों में 54 और ऐसी इकाइयां स्थापित की जाएंगी। इनमें से प्रत्येक प्यूरीफायर की लागत 60,000 रुपये है।”

नीरी के निदेशक डॉ राकेश कुमार के अनुसार, “इस उपकरणर में लगे फिल्टर गैर बुने हुए कपड़े से बने हैं जो सूक्ष्म कणों को 80-90 प्रतिशत और जहरीली गैसों को 40-50 प्रतिशत तक हटाने की क्षमता रखते हैं। यह उपकरण 5.5 फीट लंबा और एक फुट चौड़ा है जो पीएम-10 की मात्रा को 600 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक कम कर सकता है। इसी तरह आधे घंटे में इस उपकरण की मदद से पीएम-2.5 की मात्रा को 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक कम किया जा सकता है। इसकी एक खास बात यह है कि इस उपकरण को 10 घंटे तक संचालित करने में सिर्फ आधा यूनिट बिजली की खपत होती है। यह उपकरण अपने आसपास के लगभग 500 वर्ग मीटर क्षेत्र में शुद्ध हवा उपलब्ध कराने में सक्षम है।”

डॉ कुमार ने बताया कि “अगले तीन महीनों में हमारी कोशिश इस उपकरण को बेहतर बनाने की है ताकि दस हजार वर्ग मीटर के दायरे में हवा को शुद्ध किया जा सके। इसके अलावा, नाइट्रस और सल्फर ऑक्साइड समेत अन्य वायुमंडलीय प्रदूषकों की शोधन क्षमता को इस उपकरण में शामिल करने के प्रयास भी किये जा रहे हैं। इस प्यूरीफायर उपकरण का डिजाइन अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान द्वारा किया जाएगा। हालांकि, इस उपकरण का मौजूदा प्रोटोटाइप भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के औद्योगिक डिजाइन सेंटर की मदद से डिजाइन किया गया है।”

अधिकांश उच्च ट्रैफिक वाले क्षेत्रों के आसपास बहुत-सी इमारतें होती हैं जो हवा के प्रवाह को प्रतिबंधित कर देती हैं, जिसे तकनीकी भाषा में "स्ट्रीट कैन्यन" प्रभाव कहा जाता है। नतीजतन, वाहनों से होने वाला उत्सर्जन वायुमंडल में वितरित नहीं हो पाता और सड़क पर वाहनों की आवाजाही से उत्पन्न धूल एवं सूक्ष्म कण स्थानीय हवा में देर तक बने रहते हैं। (India Science Wire)

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र