औद्योगिक कार्बन डाइऑक्साइड साफ करने के लिए 'स्पंजी' लिक्विड                                                                 

      

(Graphic: ScientiFickly)

गातार बढ़ती मानव और औद्योगिक गतिविधियों से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन खतरनाक रूप से बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्सर्जन से कार्बन डाइऑक्साइड अलग करने के लिए उद्योग-जगत भौतिक और रासायनिक अवशोषण विधियों का उपयोग करता है। हालांकि, ये विधियां केवल कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर और स्टोर कर सकती हैं, जिसके स्थायी भंडारण स्थल तक के परिवहन पर अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करने की आवश्यकता होती है।

भारतीय शोधकर्ताओं ने कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण/भंडारण के लिए सरंध्र (Porus) तरल (Liquid) तैयार किया है, और बाद में इसे कैल्शियम कार्बोनेट में परिवर्तित कर दिया है, जो औद्योगिक रूप से एक मूल्यवान रसायन है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कार्बन डाइऑक्साइड को कैल्शियम कार्बोनेट में परिवर्तित करने के लिए किसी तरल की उत्प्रेरक गतिविधि एवं उसकी संरध्रता का संयोजन अपने आप में नया है, जिसे बाद में पुन: उपयोग के लिए सरंध्र तरल से अलग किया जा सकता है। शहद जैसी चिपचिपाहट वाले इस सरंध्र तरल का निर्माण आसान है, और इसे निरंतर चलने वाली औद्योगिक प्रक्रियाओं के साथ एकीकृत करना आसान है। इसे औद्योगिक कामकाजी तापमान पर स्थिर पाया गया है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के प्रोफेसर कामेंद्र पी. शर्मा के नेतृत्व में किया गया यह अध्ययन यूरोपियन केमिकल सोसाइटीज की शोध पत्रिका केमिस्ट्री-सस्टेनेबल-एनर्जी-मटेरियल्स (केमसुसकेम) में प्रकाशित किया गया है। इस संबंध में, आईआईटी बॉम्बे के वक्तव्य में बताया गया है कि यह अध्ययन, आईआईटी बॉम्बे के औद्योगिक अनुसंधान परामर्श केंद्र और विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के अनुदान पर आधारित है।

प्रोफेसर शर्मा और उनकी टीम ने वर्ष 2019 में अपने अध्ययन में यह दिखाया कि केवल खोखले सिलिका नैनोरॉड्स और एक बहुलक (गीला एजेंट) के संयोजन से बना एक सरंध्र तरल कमरे के तापमान पर कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकता है। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि अधिक ऊर्जा खर्च किए बिना कैप्चर किए गए कार्बन डाइऑक्साइड को एक उपयोगी रसायन में परिवर्तित करना अधिक मूल्यवान हो सकता है।


भारतीय शोधकर्ताओं ने कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण/भंडारण के लिए सरंध्र (Porus) तरल (Liquid) तैयार किया है, और बाद में इसे कैल्शियम कार्बोनेट में परिवर्तित कर दिया है, जो औद्योगिक रूप से एक मूल्यवान रसायन है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कार्बन डाइऑक्साइड को कैल्शियम कार्बोनेट में परिवर्तित करने के लिए किसी तरल की उत्प्रेरक गतिविधि एवं उसकी संरध्रता का संयोजन अपने आप में नया है, जिसे बाद में पुन: उपयोग के लिए सरंध्र तरल से अलग किया जा सकता है। शहद जैसी चिपचिपाहट वाले इस सरंध्र तरल का निर्माण आसान है, और इसे निरंतर चलने वाली औद्योगिक प्रक्रियाओं के साथ एकीकृत करना आसान है। इसे औद्योगिक कामकाजी तापमान पर स्थिर पाया गया है।

प्रोफेसर शर्मा ने कहा, "हमने औद्योगिक उत्सर्जन से कार्बन डाइऑक्साइड को कैल्शियम कार्बोनेट में कैप्चर करने, स्टोर करने और परिवर्तित करने से संबंधित अवधारणा का प्रमाण प्रस्तुत किया है। उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियां उच्च तापमान पर स्थिर होती हैं; सरंध्र तरल औद्योगिक तापमान पर अपने गुणों में गिरावट के बिना काम कर सकता है। हमने पाया कि कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर एवं रूपांतरण की दर 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर कम नहीं होती है। अब हमें उच्च तापमान पर कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर की दक्षता का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।”

ऐतिहासिक रूप से, सरंध्र ठोस पदार्थों का उपयोग औद्योगिक अपशिष्टों से गैसों के अवशोषण के लिए किया जाता रहा है। चूंकि ठोस प्रवाहित नहीं हो सकते, इसलिए निरंतर चलने वाली औद्योगिक प्रक्रियाओं में ऐसे फिल्टर को फिर से लगाना या एकीकृत करना मुश्किल हो जाता है। तरल पदार्थ गैसों को भी अवशोषित कर सकते हैं, लेकिन गैसों को भंडारित करने की उनकी क्षमता सरंध्र ठोस की तुलना में बहुत कम होती है। इसके अलावा, ठोस पदार्थों के विपरीत, तरल पदार्थों में रिक्त स्थान स्थायी नहीं होते हैं।

वैज्ञानिकों ने पहली बार वर्ष 2007 में स्थायी रिक्त स्थान वाले तरल पदार्थों की अवधारणा पेश की थी, जिसके बाद पहला सरंध्र तरल पदार्थ वर्ष 2015 में बनाया गया। तब से, वैज्ञानिकों ने सरंध्र तरल पदार्थ बनाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया है, जो गैसों को कुशलता से अवशोषित कर सकते हैं। उन्होंने 'आणविक पिंजरों' वाले बड़े कार्बनिक अणुओं का उपयोग किया, जो तरल पदार्थों में घुलने पर भी बरकरार रहते हैं। हालांकि, सरंध्र तरल पदार्थ बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पद्धति में जटिल कार्बनिक रसायन प्रतिक्रियाएं और कई चरण शामिल हैं।

वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने सरंध्र तरल और बायोकॉन्जुगेटेड कार्बोनिक एनहाइड्रेज़ (bCA) नामक एंजाइम को मिलाकर एक तरल मिश्रण बनाया और इसमें कैल्शियम क्लोराइड मिलाया है। एंजाइम खोखले सिलिका नैनोरॉड्स में अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड के साथ प्रतिक्रिया करता है, और इसे बाइकार्बोनेट आयनों में बदल देता है। अधिकांश एंजाइमों को सक्रिय होने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। हालांकि, bCA पॉलीमर वातावरण में बहुत अच्छी तरह से काम करता है, जो कि सरंध्र तरल प्रदान करता है।

जब कार्बन डाइऑक्साइड को सरंध्र तरल के ऊपर से गुजारा जाता है, तो सिलिका नैनोरॉड्स की खोखली गुहाएं कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेती हैं। इसके बाद, कार्बन डाइऑक्साइड धीरे-धीरे नैनोरॉड्स से निकल जाती है। यह कमरे के तापमान पर bCA के साथ मिलकर बाइकार्बोनेट आयन बनाती है। ये आयन, कैल्शियम क्लोराइड से कैल्शियम आयनों के साथ प्रतिक्रिया करके माइक्रोमीटर आकार के कैल्शियम कार्बोनेट क्रिस्टल बनाते हैं। सिस्टम को गर्म करके और तलछट को बाहर निकालकर क्रिस्टल को अलग किया जा सकता है। इस प्रकार कैल्शियम कार्बोनेट को हटाने के बाद सरंध्र तरल का पुन: उपयोग किया जा सकता है। कैल्शियम कार्बोनेट का उपयोग भवन निर्माण सामग्री, सिरेमिक टाइलें, चाक और स्वास्थ्य पूरक बनाने में किया जाता है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/IITB/HIN/17/11/2021

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