शोधकर्ताओं ने खोजा अल्जाइमर के लिए जिम्मेदार जैव-आणविक तंत्र                                                                 

      

डॉ. रजनीश गिरी

भारतीय शोधकर्ताओं ने प्रोटीन समूहों के निर्माण के लिए जिम्मेदार एक महत्वपूर्ण जैव-आणविक तंत्र की खोज की है, जो अक्सर अल्जाइमर रोग में देखा जाता है। शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि एमिलॉयड प्रीकर्सर प्रोटीन (एपीपी) का सिग्नल पेप्टाइड एमिलॉयड बीटा पेप्टाइड (Aβ42) के साथ संयुक्त रूप से एकत्रित हो सकता है। Aβ42 को अल्जाइमर के रोगजनन के लिए जाना जाता है। अल्जाइमर मनोभ्रंश या डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) का सामान्य रूप है, जो धीरे-धीरे स्मृति और अन्य महत्वपूर्ण मानसिक कार्यप्रणाली को बाधित कर देता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि कोशिका के भीतर लगभग हर प्रक्रिया के लिए प्रोटीन आवश्यक हैं। लेकिन, उनके जमा होने (एग्रीगेट) या गलत मुड़ने (मिसफोल्डिंग) के हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। ऐसी 50 से अधिक बीमारियां हैं, जिनका कारण प्रोटीन का एकत्र होना और/ या गलत मुड़ना (मिसफोल्डिंग) होता है। इसका एक उदाहरण अल्जाइमर है, जिसका संबंध तंत्रिका कोशिकाओं के बीच खाली जगह में एमाइलॉयड β42 (Aβ42) नामक गलत मुड़े पेप्टाइड्स के एकत्र होने से है। । Aβ42 एक पेप्टाइड है, जो पूर्ण लंबाई वाले प्रोटीन एमाइलॉयड प्रीकर्सर प्रोटीन (एपीपी) से प्राप्त होता है।

अध्ययन का नेतृत्व कर रहे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के शोधकर्ता डॉ रजनीश गिरी ने बताया, “आमतौर पर प्रोटीन के एकत्र होने या गलत मुड़ने पर वे कोशिकाओं के चारों ओर जमा हो जाते हैं और उन्हें मार देते हैं, जिससे कई बीमारियां पैदा होती हैं। अब तक यह जानकारी नहीं थी कि क्या एमाइलॉइड प्रीकर्सर प्रोटीन के सिग्नल पेप्टाइड में भी रोग पैदा करने वाले एग्रीग्रेट बनाने की प्रवृत्ति होती है? क्या सिग्नल पेप्टाइड अल्जाइमर रोग संबंधी पेप्टाइड Aβ42 के साथ इकट्ठे जमा रह सकते हैं? ऐसे प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए यह अध्ययन किया गया है।”


भारतीय शोधकर्ताओं ने प्रोटीन समूहों के निर्माण के लिए जिम्मेदार एक महत्वपूर्ण जैव-आणविक तंत्र की खोज की है, जो अक्सर अल्जाइमर रोग में देखा जाता है। शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि एमिलॉयड प्रीकर्सर प्रोटीन (एपीपी) का सिग्नल पेप्टाइड एमिलॉयड बीटा पेप्टाइड (Aβ42) के साथ संयुक्त रूप से एकत्रित हो सकता है। Aβ42 को अल्जाइमर के रोगजनन के लिए जाना जाता है। अल्जाइमर मनोभ्रंश या डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) का सामान्य रूप है, जो धीरे-धीरे स्मृति और अन्य महत्वपूर्ण मानसिक कार्यप्रणाली को बाधित कर देता है।

डॉ. रजनीश गिरी ने बताया, “अब तक एमाइलॉइड प्रीकर्सर प्रोटीन में केवल Aβ क्षेत्र को विषैले एग्रीगेट बनाने के लिए जाता रहा है। लेकिन, हमने देखा कि एमाइलॉइड प्रीकर्सर प्रोटीन के सिग्नल पेप्टाइड न केवल कोशिका नाशक एग्रीगेट बनाते हैं, बल्कि इन-विट्रो परिस्थितियों में Aβ42 पेप्टाइड का जमाव भी बढ़ाते हैं। सिग्नल पेप्टाइड प्रोटीन के एन-टर्मिनस पर मौजूद छोटे पेप्टाइड यूनिट हैं, जो प्रोटीन को लक्ष्य बनाने का काम करते हैं। वे कोशिका के अंदर प्रोटीन के डाक पते की तरह होते हैं। आमतौर पर प्रोटीन के गंतव्य पर पहुँचने के बाद सिग्नल पेप्टाइड्स का प्रोटीन से विच्छेद हो जाता है और अक्सर कोशिका की कार्य प्रक्रिया में पेप्टाइड का पतन हो जाता है। अब सवाल यह है कि क्या वे कोशिका की अन्य प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं।यह मुमकिन हैकि वे अन्य पेप्टाइड्स से मिलकर गलत मुड़े एग्रीगेट बनाएं, जैसे कि Aβ42, जो कोशिकाओं के बाहर जमा हो जाते हैं और बीमारियां पैदा करते हैं।”

आईआईटी मंडी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज, इंग्लैंड और यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा, अमेरिका के शोधकर्ताओं की टीम ने एपीपी के सिग्नल पेप्टाइड के एकत्रीकरण पैटर्न का अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि एपीपी प्रोटीन का सिग्नल पेप्टाइड कट-ऑफ होने के बाद, जिसे अब एपीपी 1-17SP कहा जाता है, अल्जाइमर रोग से जुड़े पेप्टाइड Aβ42 के साथ जुड़ता है, और उच्च विषाक्तता के साथ समुच्चय बनाता है।

शोध दल ने डाई-आधारित परीक्षणों का उपयोग करते हुए APP1-17SP पर प्रयोग किए और पाया कि APP1-17SP इन समग्र-ट्रैकिंग रंगों से जुड़ सकता है। इसके अलावा, Aβ42 पेप्टाइड के साथ APP1-17SP के समान प्रयोगों ने विशेषता तंतुमय समुच्चय का निर्माण किया। वास्तव में, Aβ42-APP1–17SP मिश्रण ने Aβ42 और APP1–17SP की तुलना में अलग-अलग उच्च साइटो-टॉक्सिसिटी देखी गई है।

डॉ. गिरी ने इस शोध कार्य का महत्व बताते हुए कहा, “इस अध्ययन से स्पष्ट है कि सिग्नल पेप्टाइड के एकत्र होने और अल्जाइमर के Aβ42 पेप्टाइड के एकत्र होने के बीच एक संभावित कड़ी दिखती है। उन्होंने कहा कि यह शोध भावी अनुसंधान में मदद करेगा, जो बीमारी पैदा करने वाले अन्य सिग्नल पेप्टाइड्स का इससे संबंध स्थापित कर सकता है।”

यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘सेल रिपोर्ट्स फिजिकल साइंस’ में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ गिरी के अलावा उनके शोध छात्र डॉ. कुंडलिक गढ़वे और तानिया भारद्वाज के साथ-साथ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड के शोधकर्ता प्रोफेसर मिशेल वेंड्रस्कोलो और दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय, अमेरिका के प्रोफेसर व्लादिमीर यूवर्स्की शामिल हैं।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/IIT Mandi/HIN/22/11/2021

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