हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से प्रभावित हो सकती हो सकती है एक अरब की आबादी                                                                 

      

हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों का अध्ययन करते प्रोफेसर डॉ मोहम्मद फारुक आजम

मूचे विश्व के लिए आज जलवायु परिवर्तन एक चुनौती है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसके कारण नदियों-सागरों के जलस्तर में वृद्धि हो रही है जो भविष्य में विकराल रूप ले सकती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में बर्फ और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसके कारण हिमालय से निकलने वाली सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के जलस्तर में वृद्धि देखने को मिली है।

दक्षिण एशिया के हिमालय-काराकोरम पर्वत श्रंखला क्षेत्र, जिसे एशिया का वाटर टावर या फिर थर्ड पोल भी कहा जाता है, पृथ्वी का सबसे अधिक ग्लेशियर वाला पर्वतीय क्षेत्र है। इसलिए हिमालय-काराकोरम के जलवायु परिवर्तन के कारण पिघल रहे ग्लेशियरों का इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियों पर पड़ने वाले प्रभाव को समझना लगभग 1 अरब मानव आबादी और जैव-विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस शोध अध्ययन के प्रमुख डॉ मोहम्मद फारुक आजम ने कहा कि हिमालयी नदी बेसिन में 27.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है और इसका 5,77,000 वर्ग किलोमीटर का सबसे बड़ा सिंचित क्षेत्र है और 26,432 मेगावाट की दुनिया की सबसे ज्यादा स्थापित पनबिजली क्षमता है। ग्लेशियरों के पिघलने से क्षेत्र की एक अरब से ज्यादा आबादी की पानी की जरूरतें पूरी होती हैं, जो इस सदी के दौरान ग्लेशियरों के टुकड़ों के तेजी से पिघलने से काफी हद तक प्रभावित जो सकती है।


समूचे विश्व के लिए आज जलवायु परिवर्तन एक चुनौती है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसके कारण नदियों-सागरों के जलस्तर में वृद्धि हो रही है जो भविष्य में विकराल रूप ले सकती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में बर्फ और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसके कारण हिमालय से निकलने वाली सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के जलस्तर में वृद्धि देखने को मिली है।

उन्होंने आगे कहा कि ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ग्लेशियर और बर्फ आधारित सिंधु घाटी के लिए गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है, जो मुख्य रूप से मानसून की वर्षा से पोषित होती हैं और वर्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण प्रभावित होती हैं।”

इस शोध-अध्ययन से जुड़ी छात्रा स्मृति श्रीवास्तव ने कहा है कि ग्लेशियरों के पिघलने और मौसमी प्रवाह के कारण नदियों का जलस्तर का 2050 के दशक तक बढ़ते रहने और फिर घटने का अनुमान है, विभिन्न अपवादों और अनिश्चितताओं के बीच अध्ययन के अनुसार नीति निर्माताओं को वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए। इसके साथ ही कृषि, जल विद्युत, स्वच्छता और खतरनाक स्थितियों के लिए स्थायी जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए भविष्य में नदियों के संभावित परिवर्तनों का आकलन करना भी जरूरी है।

इस अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं ने एक चरणबद्ध रणनीति की सिफारिश भी की है जिसमें, जिसके अंतर्गत चुनिंदा ग्लेशियरों पर पूर्ण रूप से स्वचालित मौसम केंद्रों की व्यवस्था द्वारा निगरानी नेटवर्क का विस्तार करने की अनुशंसा की गयी है। इसके अतिरिक्त तुलनात्मक अध्ययन परियोजनाओं द्वारा ग्लेशियर क्षेत्र के स्वरूप, उनके पिघलने और बर्फ के आयतन से जुड़े पहलुओं की नियमित निगरानी की आवश्यकता भी रेखांकित की गयी है है। इसके साथ ही ग्लेशियर हाइड्रोलॉजी के विस्तृत मॉडलों में लागू करने की सिफारिश भी की गई है।

शोध-अध्ययन के निष्कर्ष अन्य 250 शोध-पत्रों के विश्लेषण से प्राप्त किये गए हैं| आईआईटी इंदौर के सहायक प्रोफेसर डॉ मोहम्मद फारुक आजम की अगुआई में किया गया यह अध्ययन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्तपोषित था। इस शोध अध्ययन के निष्कर्ष ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित किये गए हैं।


इंडिया साइंस वायर

ISW/AP/HIN/24/06/2021

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