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नेशनल रिसर्च फाउंडेशन : भारतीय शोध-विकास एवं नवाचार को सशक्त बनाने की नयी पहल                                                                 

      

गर उन्नीसवीं सदी विनिर्माण क्षेत्र और बीसवीं सदी सेवा-क्षेत्र के नाम रही तो इक्कीसवीं सदी विशुद्ध रूप से तकनीक संचालित नवाचारों के नाम होने वाली है। ये तकनीकें गहन शोध के बाद विकसित होती हैं। उनके विकास की प्रक्रिया भी प्रायः जटिल , और श्रमसाध्य होती है। इन सबसे बढ़कर इस समूची प्रक्रिया को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में के लिए आवश्यक संसाधनों की आवश्यकता होती है। भारत सरकार ने इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन( एनआरएफ) के गठन की घोषणा की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट में एनआरएफ के लिए अगले पांच वर्षों के दौरान 50,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का एलान किया है। इससे भारत में शोध एवं विकास (आरएंडडी) को गति मिलने की उम्मीद है।

यह सच है कि भारत में मेधा का कभी अकाल नहीं रहा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा से लेकर इनोवेशन यानी नवाचार का गढ़ मानी जाने वाली अमेरिका की सिलिकॉन वैली और पश्चिम के विकसित राष्ट्रों में चिकित्सा से लेकर तकनीकी क्षेत्रों में भारतीयों की व्यापक उपस्थिति इसे पुष्ट करती है। इससे यही बात सामने आती है कि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन पर्याप्त अवसर न मिल पाने और अपने लिए सीमित संभावनाओं को देखते हुए ये प्रतिभाएं प्रायः देश से पलायन कर जाती हैं। ऐसे में इन प्रतिभाओं को देश में ही पुष्पित-पल्लवित करने और उनकी क्षमताओं का राष्ट्र निर्माण में योगदान बढ़ाने के लिए एनआरएफ जैसी पहल बहुत कारगर सिद्ध हो सकती है। इससे देश में शोध एवं विकास का ढांचा २१वीं सदी की आवश्यकताओं एवं अपेक्षाओं के अनुरूप विकसित हो सकेगा। साथ ही आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी इस पहल से पर्याप्त बल मिलने की संभावना है।

द्रुत विकास के नए मॉडल के तौर पर चीन को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उसके बारे में कई केस स्टडीज आई हैं कि वह कैसे ‘दुनिया का कारखाना’ बन गया। अध्ययनों में यही बात निकलकर सामने आई है कि बीते कुछ दशकों के दौरान चीन ने अपने यहाँ शोध एवं विकास को बहुत तेजी से गति दी है। यह बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत होने वाले पेटेंटों में भी प्रत्यक्ष रूप से दिखती है। अब विश्व मे सर्वाधिक पेटेंट अमेरिका या जापान के नाम नहीं, अपितु चीन के नाम से दर्ज होते हैं तो इसका कारण यही है कि चीन ने अपने यहां शोध एवं विकास की नई संस्कृति विकसित की है। अच्छी बात यही है कि विश्व में नए पेटेंट दर्ज कराने की सूची वाले देशों में भारत चीन से बहुत पीछे नहीं है और अब एनआरएफ जैसी पहल से यह अंतर और कम होने की उम्मीद है।


अगर उन्नीसवीं सदी विनिर्माण क्षेत्र और बीसवीं सदी सेवा-क्षेत्र के नाम रही तो इक्कीसवीं सदी विशुद्ध रूप से तकनीक संचालित नवाचारों के नाम होने वाली है। ये तकनीकें गहन शोध के बाद विकसित होती हैं। उनके विकास की प्रक्रिया भी प्रायः जटिल , और श्रमसाध्य होती है। इन सबसे बढ़कर इस समूची प्रक्रिया को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में के लिए आवश्यक संसाधनों की आवश्यकता होती है। भारत सरकार ने इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन( एनआरएफ) के गठन की घोषणा की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट में एनआरएफ के लिए अगले पांच वर्षों के दौरान 50,000 करोड़ रुपये आवंटित करने का एलान किया है। इससे भारत में शोध एवं विकास (आरएंडडी) को गति मिलने की उम्मीद है।

वास्तव में शोध एवं विकास को नवाचार की रीढ़ माना जाता है और इसमें किया जाने वाला निवेश कई जोखिमों के अधीन होता है और उसका प्रतिफल भी प्रायः लम्बे समयांतराल में सामने आता है। फिर भी इस पर खर्च बढ़ाना अत्यंत आवश्यक होता है। कोई भी नवाचार एक लंबी साधना का परिणाम होता है। आवश्यकता थी तो इस साधना में संसाधनों की समिधा उपलब्ध कराने की जो भारत सरकार ने एनआरएफ के गठन द्वारा कर देने की चेष्टा की है। भारत में लंबे समय से इसकी आवश्यकता इसलिए भी महसूस की जा रही थी, क्योंकि भारत से अपेक्षाकृत काफी छोटा देश दक्षिण कोरिया शोध एवं विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब चार प्रतिशत खर्च करता है, जिसकी तुलना में भारत मात्र अपने जीडीपी का मात्र 0.6 से 0.7 प्रतिशत हिस्सा ही इस मद में खर्च करता आया है। यहां तक कि भारत की तुलना में भीमकाय अर्थव्यवस्था वाला चीन भी अपने जीडीपी का दो प्रतिशत तक शोध एवं विकास गतिविधियों पर विकसित करता आया है। दक्षिण कोरिया और चीन को इसका प्रत्यक्ष लाभ भी मिला है, क्योंकि उनके इन प्रयासों के चलते इन देशों की कई कंपनियों ने पश्चिम की तमाम प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ दिया है। अब भारत भी इस दिशा में खर्च बढ़ाने जा रहा है तो उसके अपेक्षित परिणाम भी निश्चित रूप से मिलेंगे।

देश में तकनीकी संस्थानों से निकलने वाले छात्र अक्सर पेशेवर कसौटी पर एकदम से खरे नहीं उतर पाते। कई उद्यमियों ने विभिन्न अवसरों पर यह बात कही है कि परिसरों से भर्तियों के दौरान उन्हें ऐसे उम्मीदवार प्रायः नहीं मिलते जिन्हें वे पहले दिन से उत्पादन प्रणाली का हिस्सा बना सकें। उन्हें परिसरों से निकालकर संबंधित उद्यमों के अनुरूप ढालने में समय और संसाधन अधिक खर्च होने के साथ ही उनकी उत्पादकता भी प्रभावित होती है। कई जानकार इसका कारण कहीं न कहीं शोध एवं विकास के मोर्चे पर शिथिलता को भी मानते हैं। ऐसे में एनआरएफ का एक लाभ यह भी मिलेगा कि शोध एवं विकास को प्रोत्साहन से देश में प्रतिभाओं का उनके शैक्षणिक परिसरों में ही उन्नयन आरंभ हो जाएगा। इससे उद्यमों और समग्र अर्थव्यवस्था की उत्पादकता बढ़ेगी और पहले जिस प्रक्रिया में समय और संसाधन व्यय होते थे, उनकी बचत से उनका कहीं अन्यत्र विनिवेश एवं उपयोग किया जाना संभव हो सकेगा।

एनआरएफ से यही अपेक्षा की जा रही है कि यह राष्ट्रीय प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए देश में समग्र अनुसंधान क्षेत्र को सशक्त करने का काम करेगा।


इंडिया साइंस वायर

ISW/RM/HIN/17/02/2021

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