ओमिक्रॉन की पहचान के लिए भारतीय शोधकर्ताओं ने विकसित किये दो नये परीक्षण                                                                 

      

वायरस जीनोम निष्कर्षण से संबंधित प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटोः क्रिएटिव कॉमन्स)

कोरोना वायरस संक्रमण जनित कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रकोप से दुनिया पूरी तरह उबर नहीं सकी थी कि वायरस का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। ओमिक्रॉन के उभरने के बाद पूरी दुनिया में एक बार फिर हलचल मची है और वायरस के नये रूप से निपटने के उपाय खोजे जा रहे हैं।

कोरोना संक्रमण से बचाव संबंधी नियमों में सख्ती बढ़ाने और यात्रा प्रतिबंध जैसे उपायों के साथ-साथ नये वेरिएंट की पहचान आवश्यक है। इस दिशा में कार्य करते हुए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली द्वारा दो अलग-अलग परीक्षण विकसित किए गए हैं।

ओमिक्रॉन के ख़तरे को देखते हुए कई प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं और हवाईअड्डों पर बाहर से आ रहे लोगों की जाँच अनिवार्य कर दी गई है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ये दोनों नये परीक्षण उन लोगों के लिए विशेष रूप से अहम हैं, जिन्हें यात्रा से पहले परीक्षण रिपोर्ट के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच असम स्थित आईसीएमआर के क्षेत्रीय केंद्र आईसीएमआर-आरएमआरसी, डिब्रूगढ़ के वैज्ञानिकों द्वारा डॉ बिस्वज्योति बोरकाकोटी के नेतृत्व में नयी परीक्षण किट विकसित की गई है। एएनआई की रिपोर्ट में बताया गया है कि यह किट हाइड्रोलोसिस जाँच-आधारित रियल-टाइम आरटी-पीसीआर पर आधारित है, जो दो घंटे में कोरोना के नये वेरिएंट ओमिक्रॉन का पता लगाने में सक्षम है।


कोरोना वायरस संक्रमण जनित कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रकोप से दुनिया पूरी तरह उबर नहीं सकी थी कि वायरस का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। ओमिक्रॉन के उभरने के बाद पूरी दुनिया में एक बार फिर हलचल मची है और वायरस के नये रूप से निपटने के उपाय खोजे जा रहे हैं।

आईसीएमआर-आरएमआरसी द्वारा विकसित किट का उत्पादन शत प्रतिशत स्वदेशी रूप से कोलकाता की कंपनी जीसीसी बायोटेक द्वारा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर किया जा रहा है। इस किट का उपयोग आरटी-पीसीआर सुविधा से लैस प्रयोगशालाओं में किया जा सकेगा। यह एंटीजेन परीक्षण किट की तरह नहीं है, जिसे ऑन-साइट परीक्षण के लिए उपयोग किया जाता है।

आईआईटी, दिल्ली के वैज्ञानिकों को भी ओमिक्रॉन की पहचान के लिए आरटी-पीसीआर आधारित किट विकसित करने में सफलता मिली है। सामान्य आरटी-पीसीआर की तरह, आईआईटी, दिल्ली की नयी परीक्षण किट से 90 मिनट के भीतर ओमिक्रॉन का पता लग सकता है। SARS-CoV-2 के ओमिक्रॉन वेरिएंट की पहचान के लिए यह परीक्षण आईआईटी, दिल्ली के कुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया है।

अत्याधुनिक अनुक्रमण विधियों का उपयोग करते हुए ओमिक्रॉन की पहचान दुनिया भर में की जा रही है, जिसमें तीन दिनों से अधिक समय लगता है। आईआईटी, दिल्ली द्वारा विकसित परीक्षण विशिष्ट उत्परिवर्तनों (Mutations) का पता लगाने पर आधारित है, जो ओमिक्रॉन संस्करण में पाये गए हैं और वर्तमान में SARS-CoV-2 के अन्य परिसंचारी वेरिएंट में अनुपस्थित हैं। आईआईटी, दिल्ली द्वारा जारी वक्तव्य में यह जानकारी प्रदान की गई है।

आईआईटी, दिल्ली द्वारा जारी वक्तव्य में बताया गया है कि ‘एस’ जीन में इन उत्परिवर्तनों को लक्षित करने वाले प्राइमर सेट को ओमिक्रॉन संस्करण या SARS-CoV-2 के अन्य वर्तमान परिसंचारी वेरिएंट्स के विशिष्ट विस्तारण (Amplification) के लिए डिजाइन किया गया है और रियल टाइम पीसीआर तकनीक का उपयोग करके परीक्षण किया गया है। कोरोना के अन्य रूपों से अलग ओमिक्रॉन की पहचान के लिए सिथेंटिक डीएनए अंशों का उपयोग करके परीक्षण को अनुकूलित किया गया है। इसका उपयोग ओमिक्रॉन संक्रमित व्यक्तियों की पहचान और अलगाव के लिए त्वरित परीक्षण के रूप में किया जा सकता है।

आईआईटी, दिल्ली ने इस परीक्षण के लिए भारतीय पेटेंट के लिए आवेदन किया है और व्यावसायिक उत्पादन के लिए संभावित उद्योग भागीदारों के साथ बातचीत भी की जा रही है। आईआईटी, दिल्ली को इससे पहले SARS-CoV-2 के निदान के लिए आरटी-पीसीआर किट के लिए आईसीएमआर की मंजूरी मिली है, जिसे सफलतापूर्वक बाजार में लॉन्च किया गया था।

उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 26 नवंबर को नये कोरोना वायरस वेरिएंट को ‘B.1.1.529’ नाम दिया, जिसे दक्षिण अफ्रीका में 'ओमिक्रॉन' के रूप में पाया गया है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/ICMR-IITDelhi/Hin/14/12/2021

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