विटामिन-बी12 के बेहतर उपयोग में मददगार हो सकता है पादप अर्क                                                                 

      

डॉ महेंद्र पी. दारोकर

वा दिए जाने बाद मरीज पर उस दवा का सटीक असर कई कारकों पर निर्भर करता है। शरीर द्वारा दवा ग्रहण करने की दर और उसका तेजी से अवशोषण इस प्रक्रिया का एक मुख्य हिस्सा है। हालांकि, एनीमिया, पेट अथवा आंत रोगों से ग्रस्त लोगों में विटामिन-बी12 का अवशोषण एक समस्या के रूप में देखा गया है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसे पादप अर्क की पहचान की है जो बी12 के अवशोषण में वृद्धि करके दवा के प्रभाव को बढ़ा सकता है।

इस पादप अर्क की पहचान लखनऊ स्थित केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन में की गई है। जैविक एवं कृत्रिम परिवेश में पादप अर्क की उपयोगिता का परीक्षण करने पर इसे बी12 के अवशोषण में प्रभावी पाया गया है। छोटे जीवों के नमूनों को 2000 मि.ग्रा./ कि.ग्रा. शरीर के भार के अनुपात में यह अर्क दिए जाने के बावजूद उनमें दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिले हैं। दवाओं को असर दिखाने के लिए उनका रक्त प्रवाह के जरिये शरीर में निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचना जरूरी होता है। शरीर द्वारा दवा ग्रहण करने की यह प्रक्रिया दवा का अवशोषण कहलाती है।

सीमैप के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ महेंद्र पी. दारोकर ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “जिस पौधे से यह अर्क प्राप्त किया गया है, उसका उपयोग आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में लंबे समय से किया जाता है। हालांकि, बौद्धिक संपदा अधिकार की प्रक्रिया पूरी न होने के कारण अभी उस पौधे के नाम का खुलासा नहीं किया गया है। यह एक बहुउपयोगी पादप अर्क है, जिसे मौखिक सेवन के लिए कैप्सूल के रूप में विकसित किया गया है।”


पादप स्रोतों से विटामिन-बी12 के स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले जैविक रूप से सक्रिय रूप उपलब्ध नहीं हैं। समुद्री पौधों या फिर मशरूम में पाया जाने वाला विटामिन-बी12 इसके उदाहरण हैं, जिनका सेवन करने के बावजूद शरीर को बी12 का पोषण नहीं मिल पाता है।

विटामिन-बी12 मानव शरीर में संश्लेषित नहीं हो सकता और इसे मछली, मांस, चिकन, अंडा एवं दूध जैसे पशु उत्पादों से प्राप्त प्रोटीन या फोर्टिफाइड अनाज उत्पादों के सेवन के जरिये प्राप्त करना पड़ता है। पादप स्रोतों से विटामिन-बी12 के स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले जैविक रूप से सक्रिय रूप उपलब्ध नहीं हैं। समुद्री पौधों या फिर मशरूम में पाया जाने वाला विटामिन-बी12 इसके उदाहरण हैं, जिनका सेवन करने के बावजूद शरीर को बी12 का पोषण नहीं मिल पाता है।

डॉ दारोकर ने बताया कि “इस कैप्सूल से विटामिन बी-12 का स्राव नियंत्रित ढंग से होता है। यह अर्क पीएच आधारित घुलनशीलता प्रदान करता है (क्षारीय / आंतों के पीएच में घुलनशील), जिससे यह अम्लीय एवं गैस्ट्रिक वातावरण को पार करके आंतों के पीएच तक पहुंच जाता है। यह खुराक की आवृत्ति को भी कम करता है और इस प्रकार रोगी द्वारा इसे ग्रहण करने की दर में सुधार होता है। बी12 के अवशोषण में बढ़ोतरी के लिए जैविक सक्रियता बढ़ाने वाले उत्पादों के अलावा अन्य उत्पाद नहीं हैं। यह पादप अर्क विश्वसनीय है क्योंकि इसका उपयोग पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में लंबे समय से किया जा रहा है।”

विटामिन-बी12 की कमी के ज्यादातर मामले उसके कम अवशोषण से जुड़े होते हैं। भारत में करीब 60-70 प्रतिशत आबादी विटामिन बी-12 की कमी से पीड़ित है। 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में बी12 के अवशोषण की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है। लंबे समय तक उपयोग की जाने वाली कुछ दवाइयां भी बी12 के अवशोषण को बाधित कर सकती हैं। भोजन में बी12 की अधिकता निरंतर बनी रहे तो शरीर उसकी आरक्षित मात्रा में कमी कर देता है। शरीर में बी-12 की कमी कई कारणों से हो सकती है, जिनमें जीवनशैली भी शामिल है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस फॉर्मूले का व्यवसायीकरण करने से पहले इसका प्री-क्लिनिकल ट्रायल और मनुष्यों पर इसके प्रभाव का विस्तृत रूप से आकलन किए जाने की जरूरत है।
इंडिया साइंस वायर