रक्षा अनुसंधान में महत्वपूर्ण हो सकती है विश्वविद्यालयों और उद्योगों की भागीदारी                                                                 

      

भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, अनुसंधान एवं विकास केंद्रों और औद्योगिक क्षेत्र में मौजूद प्रतिभाओं के विकास को बढ़ावा दे रहा है ताकि संयुक्त रूप से किए जाने वाले शोध कार्यों एवं अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में उनकी भूमिका को सुनिश्चित किया जा सके।

विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत शोधकर्ताओं को तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिए डीआरडीओ ने प्रौद्योगिकी विकास फंड (टीडीएफ) कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अंतर्गत विश्वविद्यालयों, अनुसंधान एवं विकास केंद्रों और औद्योगिक क्षेत्रों के शोधकर्ता डीआरडीओ को अपने शोध प्रस्ताव भेज सकते हैं। स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा देने के लिए रक्षा मंत्रालय की पहल पर शुरू किया गया यह फंड ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का हिस्सा है।

डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ जी. सतीश रेड्डी ने यह जानकारी राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के अवसर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दी है। डॉ रेड्डी ने कहा कि डीआरडीओ के सिर्फ सात हजार वैज्ञानिकों द्वारा भारत जैसे विस्तृत देश की सभी प्रौद्योगिकी संबंधी जरूरतें पूरी करना कठिन है। इसीलिए, नवीन प्रौद्योगिकियों के विकास में विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और उद्योगों की भागीदारी महत्वपूर्ण हो सकती है।

देश में शोध एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए चार अनुसंधान बोर्ड भी गठित किए गए हैं। इनमें वैमानिकी अनुसंधान एवं विकास बोर्ड, आयुध अनुसंधान बोर्ड, नौसेना अनुसंधान बोर्ड और लाइफ साइंसेज रिसर्च बोर्ड शामिल हैं। इन बोर्डों का उद्देश्य रक्षा संबंधी ऐसी अत्याधुनिक संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं को मजबूती प्रदान करना है, जो भविष्य डीआरडीओ द्वारा विकसित की जाने वाली विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकियों के विकास में मददगार हो सकती हैं। इसके अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत शोध एवं विकास संस्थानों के नवोन्मेषी विचारों के आदान-प्रदान, बुनियादी अनुसंधान को प्रोत्साहन और ज्ञान के आधार को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक सुविधाएं की जाती हैं।


"विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत शोधकर्ताओं को तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिए डीआरडीओ ने प्रौद्योगिकी विकास फंड (टीडीएफ) कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अंतर्गत विश्वविद्यालयों, अनुसंधान एवं विकास केंद्रों और औद्योगिक क्षेत्रों के शोधकर्ता डीआरडीओ को अपने शोध प्रस्ताव भेज सकते हैं। "

वैमानिकी अनुसंधान एवं विकास बोर्ड ने एयरोनॉटिक्स और इससे संबंधित क्षेत्रों में परियोजनाओं को मंजूरी दी है। आयुध अनुसंधान बोर्ड ने ऊर्जा सामग्री, सेंसर, बैलिस्टिक और अन्य आयुध क्षेत्रों में परियोजनाओं को मंजूरी दी है। नौसेना अनुसंधान बोर्ड के तहत सैन्य उद्देश्यों के लिए समुद्री प्रौद्योगिकियों से जुड़ी परियोजनाएं संचालित की जाती हैं। जबकि, लाइफ साइंसेज रिसर्च बोर्ड के तहत जैविक और जैव-चिकित्सा विज्ञान, मनोविज्ञान, शरीर विज्ञान, जैव-इंजीनियरिंग, ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कृषि, खाद्य विज्ञान और इससे जुड़ी प्रौद्योगिकी में शोध को बढ़ावा दिया जाता है।

इन अनुसंधान बोर्डों ने हल्के हेलीकॉप्टर जैसी अत्याधुनिक वैमानिकी प्रणालियों के निर्माण क्षमताओं में वृद्धि करने में मदद की है। भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू स्थित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन कम्प्यूटेशनल फ्लूइड डायनेमिक्स (सीएफडी) जैसे केंद्रों की स्थापना में भी इनकी भूमिका रही है। सीएफडी को देश के भीतर वैमानिकी प्रणालियों के डिजाइन को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।

मार्च में किए गए उपग्रह भेदी मिसाइल के सफल परीक्षण के अलावा डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने कई अन्य रक्षा प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं, जिसमें अग्नि, पृथ्वी और आकाश जैसी मिसाइलें मुख्य रूप से शामिल हैं। एक सवाल के जवाब में डॉ रेड्डी ने बताया कि भारत द्वारा उपग्रह भेदी परीक्षण से पैदा अधिकतर कचरा नष्ट हो गया है और शेष बचा मलबा भी कुछ समय में खत्म हो जाएगा।

इस मौके पर सीएसआईएआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने कहा कि प्रौद्योगिकी दिवस महत्वपर्ण है क्योंकि वर्ष 1998 में इसी दिन भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था और स्वदेशी विमान हंस ने इसी दिन उड़ान भरी थी। डीआरडीओ द्वारा विकसित त्रिशूल मिसाइल का आखिरी परीक्षण भी इसी दिन किया गया था।
India Science Wire

Latest Tweets @Indiasciencewire