जब साथ छोड़ देती है परछाई

उमाशंकर मिश्र

चपन से हमें पढ़ाया जाता है कि सूर्य पूरब में उगता है,परछाई हमेशा साथ साथ चलती है, हर दिन मध्यायह्न के वक्तह सूर्य सिर के ऊपर होता है और दिन-रात की अवधि हमेशा बराबर होती है। लेकिन, खगोल वैज्ञानिक इन चारों धारणाओं को गलत ठहराते हैं। सच तो यह कि वर्ष में सिर्फ दो दिन ही सूर्य वास्तधविक पूरब दिशा में उगता है। इसी तरह साल में महज दो दिन ऐसे होते हैं, जब सूर्य मध्या ह्न के समय ठीक हमारे सिर के ऊपर चमकता है। इसलिकए उन दो दिनों में मध्यााह्न के समय हमारी परछाई हमारा साथ छोड़ देती है। परछाई न बनने के इस घटनाक्रम को खगोल विज्ञानी जीरो शैडो-डे या ‘शून्या छाया दिवस’ कहते हैं।

यह तो हम जानते ही हैं कि हमारी पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और अपनी धुरी पर भी घूमती है। पृथ्वीण अपने अक्षांश पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है, जिस कारण सूर्य का प्रकाश धरती पर हमेशा एक जैसा नहीं पड़ता और इसी वजह से दिन और रात की अवधि भी बराबर नहीं होती। पृथ्वीम के सूर्य का चक्कीर लगाते रहने के कारण सूर्य के उत्तररायण और दक्षिणायन की प्रकिया घटित होती है और ऋतुओं में परिवर्तन होता है।

जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में 23.5 डिग्री अक्षांश पर स्थित मकर रेखा से उत्तटर की ओर बढ़ता है, तो इसे उत्तपरायण कहते हैं। उत्त र की ओर बढ़ते हुए 21 जून को सूर्य उत्तडरी गोलार्ध में 23.5 डिग्री अक्षांश पर स्थित कर्क रेखा के ऊपर पहुंच जाता है। इस दौरान भूमध्यत रेखा से कर्क रेखा के बीच कुछ खास स्था3नों पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, जिस कारण वहां लंबवत खड़ी किसी चीज की परछाई नहीं बनती है। उत्तकरायण के दौरान उत्त्री गोलार्ध में गरमी बढ़ने लगती है, रातें छोटी तथा दिन लंबे होते हैं और 21 जून को यहां सबसे छोटी रात एवं दिन सबसे बड़ा होता है।

सूर्य जब दक्षिण की ओर बढ़ने लगता है तो उसे दक्षिणायण कहते हैं और 22 दिसंबर के आसपास सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में स्थित मकर रेखा के ऊपर चमकता है। इस दौरान वहां पर गरमी का मौसम होता है तथा दिन लंबे और रातें छोटी होती हैं। इस दौरान भूमध्य रेखा से दक्षिण में 23.5 डिग्री अक्षांश पर स्थित मकर रेखा पर मौजूद कई स्था2नों पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, तो वहां भी मध्यासह्न के समय कुछ पलों के लिए शून्यश छाया दिवस होता है। ध्याान रहे कि शून्यी छाया दिवस की घटना कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच में ही घटित होती है। कर्क रेखा के उत्तूर और मकर रेखा के दक्षिण में शून्य छाया दिवस नहीं होता है।

सूर्य के उत्तररायण और दक्षिणायण की प्रक्रिया से स्पशष्टर है कि सूर्योदय का केंद्र भी बदलता बदलता रहता है। इस तरह साल में महज दो दिन (21 मार्च एवं 21 सितंबर के आसपास) सूर्य वास्तहविक पूरब दिशा में निकलता है। इन दो दिवसों को विषुव दिवस या इक्विनॉक्सत कहते हैं। बाकी के दिनों में सूर्योदय का केंद्र उत्तबर-पूर्व या फिर दक्षिण पूर्व होता है। 21 जून और 22 दिसंबर को सूर्य जब उत्तर-पूर्व या फिर दक्षिण-पूर्व में अपने शीर्ष बिंदु पर होता है, तो उसे अयनांत या सॉलिस्टिस कहते हैं।

“एक आम कहावत है कि परछाई कभी साथ नहीं छोड़ती, पर खगोल वैज्ञानिकों के मुताबिक साल के दो दिन ऐसे होते हैं, जब परछाई भी साथ छोड़ देती है।”,

21 मार्च के बाद के दिनों में निरंतर गौर करें तो हम पाएंगे कि सूर्योदय का बिंदु धीरे-धीरे उत्तूर की ओर खिसक रहा है और इस तरह 21 जून को ग्रीष्मे अयनांत या कर्क संक्रांति के दिन सूर्योदय का केंद्र वास्तदविक पूर्व दिशा से उत्तसर की ओर अधिकतम बिंदु पर पहुंच जाता है। अगले दिन से सूर्य दक्षिण की ओर खिसकने लगता है, जिसे भारत में हम दक्षिणायण कहते हैं। दक्षिण की ओर अपनी इस यात्रा में 21 सितंबर को सूर्योदय का केंद्र एक बार फिर वास्तिविक पूर्व दिशा में पहुंच जाता है। जबकि दक्षिण-पूर्व में अपने अधिकतम बिंदु पर यह 21 दिसंबर को पहुंचता है। इसके अगले दिन से पुन: उत्त रायण शुरू हो जाता है और यह क्रम इसी तरह चलता रहता है।

21 मार्च के बाद के दिनों में निरंतर गौर करें तो हम पाएंगे कि सूर्योदय का बिंदु धीरे-धीरे उत्तूर की ओर खिसक रहा है और इस तरह 21 जून को ग्रीष्मे अयनांत या कर्क संक्रांति के दिन सूर्योदय का केंद्र वास्तदविक पूर्व दिशा से उत्तसर की ओर अधिकतम बिंदु पर पहुंच जाता है। अगले दिन से सूर्य दक्षिण की ओर खिसकने लगता है, जिसे भारत में हम दक्षिणायण कहते हैं। दक्षिण की ओर अपनी इस यात्रा में 21 सितंबर को सूर्योदय का केंद्र एक बार फिर वास्तिविक पूर्व दिशा में पहुंच जाता है। जबकि दक्षिण-पूर्व में अपने अधिकतम बिंदु पर यह 21 दिसंबर को पहुंचता है। इसके अगले दिन से पुन: उत्त रायण शुरू हो जाता है और यह क्रम इसी तरह चलता रहता है।

सूर्य भूमध्य। रेखा से कर्क रेखा की ओर उत्तंरायण में होता है तो उत्तटरी गोलार्ध में सूर्य का प्रकाश अधिक और दक्षिणी गोलार्ध में कम पड़ता है। इस दौरान दक्षिणी गोलार्ध में कड़ाके की ठंड पड़ती और तभी अंटार्कटिका जाने के अभियान कुछ समय के लिए बंद कर दिए जाते हैं।

उत्तीर से दक्षिण की ओर सूर्य वापस आता है, तो ठीक दोपहर के बारह बजे उसी अक्षांश फिर से शून्य परछाई बनती है। यानी कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच सूर्य के दक्षिणायण होते समय इस खगोलीय घटना को दोबारा देखा जा सकता है। इस तरह कन्यााकुमारी से कर्क रेखा तक मध्यक भारत के तमाम स्थाहनों में अप्रैल से जून तक और वापसी में जून से अगस्त तक किसी खास दिन मध्याुह्न में इस खगोलीय घटना को वर्ष में दो बार देखा जा सकता है।

भारत के कई शहर इन दिनों ‘शून्या छाया दिवस’ का गवाह बन रहे हैं। खगोल विज्ञानी, विद्यार्थी और जिज्ञासु लोग इस दिन तरह-तरह के प्रयोग करते हैं। वे मध्याशह्न के समय अपनी परछाई को देखते हैं, गिलास को उलटा रखकर देखते हैं या फिर किसी खंबे की परछाई को देखते हैं।

इस वर्ष भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित निकोबार द्वीप समूह के सबसे बड़े द्वीप ग्रेट निकोबार में स्थित कैम्पबेल-बे में छह अप्रैल को जीरो शैडो-डे की शुरुआत हुई थी। एस्ट्रो नॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने इससे संबंधित एक मैप जारी किया है और बताया है कि किन तारीखों पर कौन-से शहरों में जीरो शैडो-डे या ‘शून्यस छाया दिवस’ देखा जा सकेगा। भारत में अंडमान-निकोबार, केरल, तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, छत्तीेसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड समेत कई राज्यों में ‘शून्यॉ छाया दिवस’ देखा जा सकता है। (India Science Wire)

मई 25/ जुलाई 18 राजनांदगांव, अमरावती
मई 25/ जुलाई 18 राजनांदगांव, अमरावती
मई 25/ जुलाई 18 राजनांदगांव, अमरावती
मई 26/ जुलाई 17 रायपुर, नागपुर, भिलाई, दुर्ग, भंडारा, डोंगरगढ़
मई 27/ जुलाई 16 बुरहानपुर, तुमसर, गोंदिया, चांदीपुर
मई 28/ जुलाई 15 संबलपुर, बालासोर, तिल्दाe
मई 30/ जुलाई 13 खरगोन, खंडवा, बेतूल, बालाघाट, रायगढ़, झारसुगुडा
मई 31/ जुलाई 12 चांपा, कवर्धा, बड़वानी, नंदीग्राम
जून 01/ जुलाई 11 छिंदवाड़ा, सिवनी, बिलासपुर, हल्दिया
जून 03/ जुलाई 9 हरदा, कोरबा, राउरकेला, खड़गपुर, मेदिनीपुर
जून 05/ जुलाई 7 इटारसी, मंडला, कोलकाता
जून 06/ जुलाई 6 होशंगाबाद, इंदौर
जून 07/ जुलाई 4 नरसिंहपुर
जून 09/ जुलाई 3 अहमदाबाद, देवास, कल्यातणी
जून 11/ जुलाई 1 अंबिकापुर
जून 15/ जून 27 गांधी नगर, उज्जै न, सिहोर, जबलपुर, बांकुरा
जून 17/ जून 25 भोपाल, भुज
जुलाई 12/जून 30 धमतरी, वर्धा, बालांगीर, अकोला
जुलाई 13/जून 29 पुरुलिया, रांची, रतलाम
जुलाई 20 मेसरा
स्रोत: एस्ट्रोचनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया

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