स्माीर्टफोन से हो सकेगी ध्वनि प्रदूषण की निगरानी

By उमाशंकर मिश्र

नई दिल्ली :भारत जैसे अत्यखधिक जनसंख्या् वाले देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण, सड़कों के फैलते जाल और वाहनों की बढ़ती संख्याव के कारण ध्व नि प्रदूषण का स्ततर भी लगातार बढ़ रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब स्माकर्टफोन को जरिया बनाकर ध्वननि प्रदूषण की निगरानी के लिए एक नया तरीका खोज निकाला है।

देश में स्मा र्टफोन के उपयोगर्ताओं की संख्याू निरंतर बढ़ रही है और शोधकर्ताओं की मानें तो ध्व नि प्रदूषण की निगरानी करने में स्माार्टफोन एक महत्वीपूर्ण भूमिका निभा सकता है। एन्वाायरमेंट मॉनिटरिंग ऐंड एसेसमेंट जर्नल में प्रकाशित अध्यसयन के अनुसार ध्वकनि प्रदूषण की निगरानी और मैपिंग करने में स्माैर्टफोन की अहम भूमिका हो सकती है।

पटियाला की थापर यूनिवर्सिटी के कंप्यूीटर साइंस विभाग और ऑस्ट्रेरलिया की कर्टिन यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्यवयन के मुताबिक ध्वयनि प्रदूषण के स्त र का पता लगाने में स्मानर्टफोन की भूमिका शोर के स्तार को मापने वाले मौजूदा तंत्र की अपेक्षा काफी अहम साबित हो सकती है।

"पटियाला की थापर यूनिवर्सिटी के कंप्यूतटर साइंस विभाग और ऑस्ट्रेतलिया की कर्टिन यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्यवयन के मुताबिक ध्वयनि प्रदूषण के स्त र का पता लगाने में स्मानर्टफोन की भूमिका शोर के स्तार को मापने वाले मौजूदा तंत्र की अपेक्षा काफी अहम साबित हो सकती है।"

स्मानर्टफोन पर आधारित इस नए निगरानी तंत्र में एक एंड्रॉयड एप्लीऔकेशन की भूमिका रहती है, जो शोर के स्तर का पता लगाकर आंकड़ों को एक सर्वर पर भेजता है और फिर ध्वंनि प्रदूषण के स्तर को चित्र के रूप में गूगल मैप्सा पर शेयर कर देता है। अध्यायनकर्ताओं के मुताबिक सेंसिंग की इस प्रक्रिया में जन-भागीदारी होने की वजह से वास्त‍विक समय पर शोर की मैपिंग की जा सकती है।

विशेषज्ञों के अनुसार अत्यपधिक शोर श्रवण तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण चिड़चिड़ापन, उच्चा रक्तलचाप और हृदय तक रक्तन पहुंचाने वाली धमनी से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है।

शोधकर्ताओं ने पर्यावरणीय शोर को मापने के लिए एक एंड्रॉयड एप्लीाकेशन बनाई है, जिसका परीक्षण पंजाब के खन्ना् एवं मंडी गोबिंदगढ़ क्षेत्र में किया गया। अध्यायन के दौरान यह एप्ली केशन खन्नाा एवं मंडी गोबिंदगढ़ में स्माार्टफोन यूजर्स को वितरित की गई और रिहायशी, व्या‍वसायिक, शैक्षिक एवं ध्वषनि प्रतिबंधित क्षेत्रों में शोर के स्तार की मॉनिटरिंग की गई। अध्यईयनकर्ताओं के अनुसार शोर के स्तहर की निगरानी करने वाली मौजूदा उपकरणों की तुलना में स्मा र्टफोन की उपयोगिता बेहतर पाई गई है। अध्य्यन में रिहायशी, व्यापवसायिक और औद्योगिक इलाकों में शोर का स्तमर निर्धारित मापदंड से काफी अधिक पाया गया।

स्माोर्टफोन उपयोगकर्ताओंकी भागीदारी से ध्वयनि प्रदूषण की निगरानी करना एक आसान, सस्ता् एवं टिकाऊ विकल्पय बन सकता है। अधिकतर स्मानर्टफोन्सि में एक्सेालेरोमीटर, गाइरोस्को, मैग्नेयटोमीटर, लाइट माइक्रोफोन और पोजीशन सेंसर्स (जीपीएस) जैसे सेंसर लगे रहते हैं, जो विभिन्नण मॉनिटरिंग गतिविधियों में उपयोगी माने जाते हैं। स्मारर्टफोन में प्रोसेसिंग, कम्युैनिकेशन और स्टो्रेज की क्षमता होने के कारण पर्यावरणीय शोर की मैपिंग आसानी से की जा सकती है।

ध्वकनि प्रदूषण की निगरानी के लिए फिलहाल संवेदनशील माइक्रोफोन युक्तट खास तरह के साउंड लेवल मीटर का उपयोग किया जाता है। शोर के स्तरर का पता लगाने के लिए ये सेंसर्स कुछ चुनिंदा जगहों पर तैनात किए जाते हैं। समय और स्थान के मुताबिक शोर को प्रभावी ढंग से मॉनिटर करने के लिए सेंसरों का एक विस्तृत नेटवर्क होना जरूरी है। यह प्रक्रिया काफी महंगी और श्रमसाध्यर है, इसलिए इस पर अमल करना काफी कठिन है। ऐसे में ध्वानि प्रदूषण की निगरानी के लिए कम लागत वाली मापक डिवाइस की सख्तइ जरूरत है, जिसका आसानी से बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा सके।

शोधकर्ताओं के अनुसार पारंपरिक तरीकों की बजाय ध्वीनि प्रदूषण की निगरानी के लिए कम्यु निटी सेंसिंग अब एक नया जरिया बनकर उभर सकती है, जिसमें प्रशिक्षित इंजीनियरों के बजाय आम लोगों की हिस्सेिदारी देखने को मिल सकती है। अध्यकयनकर्ताओं की टीम में राजीव कुमार, अभिजीत मुखर्जी और वी.पी. सिंह शामिल थे। (India Science Wire)

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