कार्बन फुट-प्रिंट कम करने में उपयोगी हो सकती है नई तकनीक                                                                 

बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म कार्बन डाईऑक्साइड ब्रेटन चक्र परीक्षण लूप सुविधा विकसित की है, जो सौर ताप समेत भविष्य के ऊर्जा संयंत्रों से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में मददगार हो सकती है।

यह अगली पीढ़ी के लिए भारत का पहला टेस्‍ट बेड है, जो बिजली उत्‍पादन के लिए प्रभावी, सुगठित, जल रहित, सुपर क्रिटिकल कार्बन डाईऑक्‍साइड ब्रेटन चक्र परीक्षण लूप है। आईआईएससी में ऊर्जा अनुसंधान के लिए भारत के पहले सुपर-क्रिटिकल कार्बन डाईऑक्साइड ब्रेटन चक्र आधारित सौर तापीय परीक्षण की स्थापना की गई है।

इस सुविधा का उद्घाटन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पिछले गुरुवार को आईआईएससी परिसर में किया है। इस सुविधा में सुपर-क्रिटिकल कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग किया जाएगा, जिससे कम लागत में अधिक ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा।

"सुपर-क्रिटिकल" शब्द का उपयोग कार्बन डाईऑक्साइड की सघन अवस्था के लिए किया जाता है। इस अवस्था में कार्बन डाईआक्साइड भाप की तुलना में दोगुनी सघन होती है।

" यह अगली पीढ़ी के लिए भारत का पहला टेस्‍ट बेड है, जो बिजली उत्‍पादन के लिए प्रभावी, सुगठित, जल रहित, सुपर क्रिटिकल कार्बन डाईऑक्‍साइड ब्रेटन चक्र परीक्षण लूप है। "

इस सुविधा का उपयोग सुपर-क्रिटिकल कार्बन डाईऑक्साइड आधारित बिजली संयंत्रों के विकास के लिए आवश्यक डाटा तैयार करने के लिए किया जा सकेगा। यह कई तकनीकी चुनौतियों से लड़ने में मददगार हो सकता है।

सौर तापीय विद्युत संयंत्रों की अगली पीढ़ी के लिए इस प्रयास की पहचान पहले से ही राष्ट्रीय पहल के रूप में की गई है। यह प्रणाली राष्ट्रीय सौर मिशन का एक प्रमुख उद्देश्य पूरा करती है, जो स्वदेशी निर्माण पर जोर देता है। भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर प्रदीप दत्ता और प्रोफेसर प्रमोद कुमार इस प्रौद्योगिकी के विकास में शामिल हैं।

प्रोफेसर प्रदीप दत्ता ने इस सुविधा के बारे में इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस शोध का आरंभ देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोगी साबित हो सकता है। इस उच्च स्तर के दक्षता संयंत्र चक्र में सुपर-क्रिटिकल कार्बन डाईऑक्साइड को ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। यह प्रौद्योगिकी कार्बन फुट-प्रिंट को कम करने में काफी मददगार साबित होगी।”

इस तकनीक की मदद से ऊर्जा रूपांतरण की दक्षता 50 प्रतिशत या उससे अधिक बढ़ा सकते हैं। यदि सुपर-क्रिटिकल कार्बन डाईऑक्साइड एक बंद लूप ब्रेटन चक्र में संचालित होती है तो इससे बिजली उत्पादन प्रक्रिया को कुशल बनाया जा सकता है। इस नई तकनीक की मदद से छोटे टरबाइन और सस्ते बिजली संयंत्र बनाए जा सकते हैं। इस प्रणाली के उपयोग से कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में भी कमी हो सकती है। (India Science Wire)