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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में शोध की नई पहल                                                                 

ने वाला समय कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का होगा। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2030 तक चीन अपनी जीडीपी का करीब 26 प्रतिशत और ब्रिटेन 10 प्रतिशत निवेश कृत्रिम बुद्धिमत्ता संबंधित गतिविधियों और व्यापार पर करेंगे।

तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था एवं आबादी में दूसरा सबसे बड़ा देश होने के कारण भारत के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विशेष महत्व है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा नीति आयोग को इस विषय पर विस्तृत दस्तावेज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी दी गई थी।

दुनिया भर में जब सामाजिक और आर्थिक स्तर पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के फायदों पर विचार हो रहा है तो भारत में भी इस दिशा में शोध एवं विकास को बढ़ावा देने की पहल की जा रही है। नीति आयोग ने इस नए एवं उभरते हुए क्षेत्र में शोध एवं विकास को बढ़ावा के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की रूपरेखा पेश की है।

नीति आयोग द्वारा हाल में प्रस्तुत किए गए एआईफॉरआल नामक दस्तावेज में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को एक ऐसे माध्यम से रूप में देखा जा रहा है, जो मानवीय मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने में सहायक हो सकता है। इस दस्तावेज में देश में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में शोध के लिए सेंटर ऑफ रिसर्च एक्सिलेंस और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रांसफॉरमेशनल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समेत दो स्तरीय संरचना पर जोर दिया गया है।

पहला केंद्र मौजूदा शोध के बारे में बेहतर समझ विकसित करने और नए ज्ञान के निर्माण के जरिये प्रौद्योगिकी के विकास पर केंद्रित है। इसके अलावा दूसरे केंद्र में अनुप्रयोग आधारित अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा। इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी की भूमिका भी अहम होगी।

नीति आयोग के इस दस्तावेज में ऊर्जा क्षेत्र, स्मार्ट सिटी, निर्माण, कृषि, शिक्षा और कौशल विकास और स्वास्थ्य समेत अनेक क्षेत्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का लाभ लेने के लिए सटीक नीति की आवश्यकता महसूस की गई है। माना जा रहा है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग शिक्षा, कौशल विकास, चिकित्सा, खेती, परिवहन समेत दैनिक जीवन से जुड़े अन्य क्षेत्रों उपयोगी हो सकता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े शोध में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में विकास के लिए मुख्यतः पांच स्तंभों नीति निर्माताओं, बड़ी कंपनियों, स्टार्टअप, विश्वविद्यालयों और अन्य भागीदारों को आपस में मिलकर कार्य करना होगा।


"कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग शिक्षा, कौशल विकास, चिकित्सा, खेती, परिवहन समेत दैनिक जीवन से जुड़े अन्य क्षेत्रों उपयोगी हो सकता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े शोध में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। "

एक समय था जब कम्प्यूटरों की प्रोसेसिंग क्षमता बहुत अधिक नहीं थी, लेकिन अब स्थिति अलग है। आज सुपर कम्प्यूटरों का प्रयोग उच्च-गणना आधारित कार्यों में किया जा रहा है। मौसम की भविष्यवाणी, जलवायु शोध, अणु मॉडलिंग आदि अनेक क्षेत्रों में सुपर कम्प्यूटरों का उपयोग किया जा रहा है। कुछ महीनों पहले ही पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे में मौसम के पूर्वानुमान के लिए प्रत्युष नामक सुपर कम्पयूटर स्थापित किया गया है।

भविष्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा ड्राइवर रहित वाहनों के संचालन सहित अनेक ऐसे कार्य देखने के मिल सकते हैं, जो फिलहाल असंभव लगते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा अनेक रोगों का ईलाज भी किया जा सकेगा।

हरियाणा के मानेसर में स्थित राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिक मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों की विभिन्न प्रवृत्तियों का पता लगाने के लिए रोगियों के मस्तिष्क को स्कैन करने की परियोजना पर कार्य कर रहे हैं। भविष्य में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की जा रही कृत्रिम बुद्धिमत्ता में सभी प्रकार के मस्तिष्क की तस्वीरों का डाटाबेस होगा, ताकि उनमें होने वाले किसी भी परिवर्तन की जानकारी मिल सके। इससे शरीर में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त हो सकेगी। इस प्रकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानवीय मस्तिष्क की जटिलताओं को समझने में सहायक साबित होगी।

इन सभी बातों पर गौर करें तो नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत किया गया दस्तावेज इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अमेरिका, फ्रांस, जापान, चीन और ब्रिटेन के बाद भारत ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में जो दस्तावेज प्रस्तुत किया है, वह भारत में इस क्षेत्र के विकास के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकता है। (इंडिया साइंस वायर)