हिमालय के जंगलों की आग रोकने के लिए नई वैज्ञानिक पहल

शुभ्रता मिश्रा

हिमालय के जंगलों में लगने वाली विनाशकारी आग के लिए जलवायु परिवर्तन को एक बड़ा कारक बताते हुए वैज्ञानिकों ने इससे निपटने का एक अनूठा सुझाव दिया है। अल्मोयड़ा स्थित जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के वैज्ञानिकों ने आधुनिक प्रौद्योगिकी और स्थानीय संसाधनों को मिलाकर एक ऐसी प्रणाली अपनाने का सुझाव दिया है, जिससे आग लगने की संभावना वाले इलाकों की पहचान करके आग लगने की घटनाओं को रोकने के समुचित प्रबंध किए जा सकेंगे। उनके अनुसार आधुनिक तकनीक और जन-भागीदारी से न केवल जंगल की आग पर नियंत्रण पाया जा सकता है, बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक नुकसान को भी कम किया जा सकता है। हाल ही में करंट साइंस शोध-पत्रिका में प्रकाशित अध्य यन में यह बात कही गई है।

शोधकर्ताओं ने जंगल की आग में बढ़ोतरी के कई कारण बताए हैं। उनके मुताबिक हिमालयी क्षेत्रों में कम वर्षा या सूखे दिनों की संख्याा बढ़ने से जंगलों में सूखापन बढ़ रहा है। पतझड़ अधिक होने से सूखी गिरी पत्तियों की बढ़ती मात्रा, वर्षा की कमी के कारण कम होती नमी, बढ़ते चरागाह और पर्यटन इस समस्यार के अन्य कारण हैं।

नमी न होने के कारण जमीन पर पड़े पत्ते गलकर नष्ट नहीं हो पाते हैं। बड़ी तादाद में सूखे पत्ते जमा होने से जंगलों में आग लगने और उसके तेजी से फैलने का खतरा बढ़ जाता है। अध्य।यनकर्ताओं ने पाया है कि आग लगने की घटनाएं हिमालय के सं‍रक्षित वनों के बाहर ज्याहदा हो रही हैं। वर्ष 2015 में आग लगने की कुल घटनाओं में से 20 प्रतिशत घटनाएं संरक्षित वनों के बाहर हुई हैं। वर्ष 2016 में यह आंकड़ा 35 प्रतिशत तक पहुंच गया था। इसी‍ कारण शोधकर्ताओं का मानना है कि वन-पंचायत जैसी संस्था ओं की जन-भागीदारी आग की घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी है।

"हिमालयी क्षेत्रों में कम वर्षा या सूखे दिनों की संख्या बढ़ने से जंगलों में सूखापन बढ़ रहा है। पतझड़ अधिक होने से सूखी गिरी पत्तियों की बढ़ती मात्रा, वर्षा की कमी के कारण कम होती नमी, बढ़ते चरागाह और पर्यटन इस समस्याप के अन्यत कारण हैं।,"

शोधकर्ता सुब्रत शर्मा और हर्षित पंत का कहना है कि उपग्रहों से प्राप्त मौसम और जंगल की आग संबंधी सूचनाओं का स्थानीय तापमान, वर्षा और पतझड़ के आधार पर प्रेक्षण और विश्लेषण करके एक एकीकृत अग्नि संभावित सूचकांक विकसित किया जा सकता है। इसका उपयोग स्थानीय निकायों और लोगों को अपने आसपास के इलाकों में जंगल की आग की तीव्रता की सूचनाएं देने के लिए किया जा सकता है। यह एकीकृत अग्नि संभावित सूचकांक प्रणाली हिमालय के जंगलों की आग से निपटने के लिए कारगर साबित हो सकती है।

वर्ष 2016 के दौरान हिमालय में 4,433 हेक्टेयर जंगल आग से प्रभावित हुए और इससे कुल 4.6 मिलियन रुपयों का नुकसान हुआ था। जंगली आग से इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य और आजीविका भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। वैज्ञानिकों के इस प्रयास से न केवल हिमालय, बल्कि अन्य वन-क्षेत्रों में भी आग लगने के पूर्वानुमान और रोकथाम में मदद मिल सकेगी। (India Science Wire)

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