वष ᭅ2030 तक मलेᳯरया से मुिᲦ का ल᭯य

नवनीत कुमार गु᳙ा

New Delhi :᮰ीलंका और मालदीव जैसे देश मलेᳯरया से पहले ही उबर चुके ह और अब भूटान भी ᱹ वषᭅ 2018 तक मलेᳯरया के खा᭜ मेकᳱ घोषणा कर चुका है, पर भारत मᱶमलेᳯरया उ᭠मूलन आज भी ᳯटकाऊ िवकास का ल᭯ य हािसल करने कᳱ राह मᱶ एक ᮧमुख चुनौती बना ᱟआ ह।ै दिᭃण एिशया मᱶमलेᳯरया के 70 फᳱसदी मामले भारत मᱶ सामने आतेह और इससे ᱹहोने वाली 69 फᳱसदी मौतᱶहमारेदशे मᱶ होती ह।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला राष्ट्री य वनस्पवति अनुसंधान संस्थानन (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों को एक जंगली फली के पौधे से कुछ अवांछनीय आनुवांशिक तत्वोंा को अलग करके इसके दानों को खाने योग्यै एवं ज्याएदा पोषक बनाने में सफलता मिली है।

पंख सेम या गोआ बीन्सस तेजी से बढ़ने वाली एक जंगली फली है। देश के पश्चिमी और उत्तमर-पूर्वी हिस्सोंउ में इस फली की खेती खूब होती है। इस पौधे की फली के अलावा इसके तने, पत्तियों और बीजों समेत सभी हिस्सोंं को खाया जाता है।

"डॉ. मोहंती और नैनीताल में कुमाऊं विश्वविद्यालय के बायोटेक्‍नोलॉजी विभाग से जुड़े उनके समकक्ष वैज्ञानिकों ने इस फली के पौधे में अनुवांशिक बदलाव के जरिये संघनित टैनिन्‍स को कम करने का रास्‍ता खोज निकाला है, जिसका मुख्‍य काम कीटों और रोगजनकों के हमलों के विरुद्ध गोआ बीन्‍स का बचाव करना है। "

वैज्ञानिकों के मुताबिक गोआ बीन्सद में सोयाबीन की तरह ही पोषक तत्वा होते हैं। पोषक तत्व होने के बावजूद गोआ बीन्सो का सेवन एक सीमा के बाद नहीं किया जा सकता। एनबीआरआई से जुड़े वैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर मोहंती के मुताबिक इस फली के पौधे में संघनित टैनिन्सक का एक वर्ग पाया जाता है, जो पेट संबंधी विकारों को जन्मत दे सकता है।

डॉ. मोहंती और नैनीताल में कुमाऊं विश्वविद्यालय के बायोटेक्नो लॉजी विभाग से जुड़े उनके समकक्ष वैज्ञानिकों ने इस फली के पौधे में अनुवांशिक बदलाव के जरिये संघनित टैनिन्सब को कम करने का रास्ताा खोज निकाला है, जिसका मुख्यौ काम कीटों और रोगजनकों के हमलों के विरुद्ध गोआ बीन्सक का बचाव करना है।

रिसर्च जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित अध्यरयन रिपोर्ट के मुताबिक संघनित टैनिन्सी के उत्पाचदन के लिए जिम्मे दार जीन्सर में बदलाव किया जा सकता है। डॉ. मोहंती के अनुसार अब गोआ बीन्स की एक नई प्रजाति विकसित की जा सकती है, जिसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होगा और टैनिन्से की मात्रा बेहद कम हो जाएगी। उन्हों ने बताया कि ‘ऐसा करने के लिए वैज्ञानिक जीन-साइलेंसिंग नामक एक अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले कई सालों से अनाज की फसलों की अपेक्षा फलीदार फसलों में सुधार की ओर कम ध्याञन दिया गया है। डॉ. मोहंती के मुताबिक ‘फलियों की लगभग 20 हजार से अधिक प्रजातियां हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 20 अलग-अलग फलियों का उपयोग हम अपने भोजन में करते हैं।’ (India Science Wire)

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