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डिस्लेक्सिया से लड़ने के लिए शिक्षकों को किया जाएगा प्रशिक्षित                                                                 

      

(फोटो : एमडीए)

‘तारे जमीं पर’ फिल्म में डिस्लेक्सिया से ग्रस्त ईशान को उसके शिक्षक आमिर खान ने इस समस्या से उबरने में मदद की थी। इस तरह के शिक्षकों की फौज तैयार करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास ने एक नई पहल की है।

डिस्लेक्सिया तंत्रिका के विकार से संबंधित एक ऐसी स्थिति है जिसके कोई शारीरिक लक्षण नहीं होते। लेकिन, ऐसे बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में खुद को व्यक्त नहीं कर पाते। हालांकि, ऐसे बच्चों की बौद्धिक क्षमता कम नहीं होती। ऐसे बच्चों की पहचान का ज्ञान हो तो डिस्लेक्सिया का पता लगाने में शिक्षकों की बड़ी भूमिका हो सकती है।

डिस्लेक्सिया की समय रहते पहचान न हो पाने के कारण बच्चे पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं और अक्सर स्कूल छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। डिस्लेक्सिया से ग्रस्त बच्चों में पढ़ने-लिखने और सीखने में आने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास और मद्रास डिस्लेक्सिया एसोसिएशन (एमडीए) ने मिलकर ई-शिक्षणम नामक ऑनलाइन कोर्स शुरू किया है।

इस कोर्स का उद्देश्य प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों और डिस्लेक्सिया ग्रस्त बच्चों के साथ काम करने वाले साझेदारों को पीड़ित बच्चों की पहचान और समस्या से उबरने में मदद के लिए तैयार करना है। ये शिक्षक देशभर के पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को उपचारात्मक निर्देशों के जरिये डिस्लेक्सिया से निजात दिलाने में मदद करेंगे।

डिस्लेक्सिया के लक्षणों में समझने, सोचने, याद रखने में कठिनाई, वर्तनी, शब्द एवं अक्षर पहचाने में परेशानी, विलंबित तर्क क्षमता, वाक्य बनाने से जुड़ी बाधा, सिरदर्द और कोई चीज सीखने में अक्षमता शामिल है। दुनिया के कई प्रतिभाशाली लोग डिस्लेक्सिया से ग्रस्त रहे हैं। लेकिन, उन्होंने इस बीमारी को मात देकर अपनी एक अनूठी छाप छोड़ी है। ऐसे लोगों में वॉल्ट डिजनी, लियोनार्डो द विंसी, पिकासो, एल्बर्ट आइंस्टीन, एलेक्जेंडर ग्राहम बेल, अभिनेता टॉम क्रूज और बोमन ईरानी जैसी हस्तियां शामिल हैं।


प्रो। भास्कर राममूर्ति (केंद्र), निदेशक, IIT मद्रास, ने ई-शिक्षणम का शुभारंभ किया

" कोई बच्चा अगर अंग्रेजी के ‘b’ और ‘d’, गणित के ‘6’ और ‘9’ में अंतर नहीं कर पाता या फिर शब्दों की स्पेलिंग गलत बोलता है और उसे पढ़ने-लिखने में भी दिक्कत होती है तो ये डिस्लेक्सिया के लक्षण हो सकते हैं। सही जानकारी न होने के कारण माता-पिता और शिक्षक बच्चों की इस मानसिक परेशानी को समझ नहीं पाते। "

कोई बच्चा अगर अंग्रेजी के ‘b’ और ‘d’, गणित के ‘6’ और ‘9’ में अंतर नहीं कर पाता या फिर शब्दों की स्पेलिंग गलत बोलता है और उसे पढ़ने-लिखने में भी दिक्कत होती है तो ये डिस्लेक्सिया के लक्षण हो सकते हैं। सही जानकारी न होने के कारण माता-पिता और शिक्षक बच्चों की इस मानसिक परेशानी को समझ नहीं पाते। इस कारण कई बार बच्चों को उनके उपेक्षित रवैये का शिकार बनना पड़ता है।

एमडीए के अध्यक्ष डी. चंद्रशेखर के अनुसार, सिर्फ तमिलनाडु में ही डिस्लेक्सिया से पीड़ित लगभग 20 लाख बच्चे हैं। “बेहद सरल उपचारात्मक उपायों से ऐसे बच्चों को इस मानसिक परेशानी से उबरने में मदद की जा सकती है। इसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित करना एक महत्वपूर्ण पहल है।”

आईआईटी, मद्रास के निदेशक प्रोफेसर राममूर्ति ने यह कोर्स हाल ही में चेन्नई में लॉन्च किया है। पांचवीं कक्षा तक पढ़ाने वाले देशभर के शिक्षक इस कोर्स को सकते हैं। कोर्स का संयोजन नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी एनहांसिंग लर्निंग (एनपीटीईएल) द्वारा किया जा रहा है। यह एक निशुल्क कोर्स है, जिसके बारे में एनपीटीईएल के वेब पोर्टल पर जानकारी दी गई है।

इस कोर्स में डिस्लेक्सिया से परिचय, बाल विकास, पीड़ित बच्चों की पहचान, पढ़ना, वर्तनी, लेखन, गणित, अध्ययन कौशल और मल्टीपल इंटेलिजेंस जैसे कई मॉड्यूल शामिल हैं।

कोर्स को मल्टी-मॉडल शिक्षण पद्धति के अनुसार डिजाइन किया गया है, जो डिस्लेक्सिया से ग्रस्त बच्चों के प्रदर्शन और उनकी वास्तविक क्षमता के अंतर को कम करने का कारगर तरीका हो सकता है। एमडीए ने डिस्लेक्सिया पीड़ित बच्चों की पहचान और इस बीमारी से उबरने में मदद के लिए कई सरल तरीके विकसित किए हैं। कक्षा में सीखने की समस्या का सामना करने वाले बच्चों के आमतौर पर पढ़ाए जाने वाले कोर्स में इन तरीकों को भी शामिल किया जा सकता है।

इस पद्धति के उपयोग से पूरी कक्षा के बच्चों में सीखने की क्षमता अधिक बेहतर हो सकती है और डिस्लेक्सिया पीड़ित बच्चों को अलग से पढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। प्रशिक्षित शिक्षक पूरी कक्षा की सहजता बनाए रखते हुए डिस्लेक्सिया ग्रस्त बच्चों के लिए सीखने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बना सकते हैं। यह समावेशी दृष्टिकोण बच्चे के आत्मसम्मान को प्रभावित करता है और उनके सीखने और प्रदर्शन को बढ़ाने में मदद करता है।
इंडिया साइंस वायर

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