अरुणाचल में मिली कछुए की दुर्लभ प्रजाति                                                                 

      

कछुए की मनोरिया इम्प्रेसा प्रजाति

भारतीय शोधकर्ताओं को अरुणाचल प्रदेश के जंगलों में कछुए की दुर्लभ प्रजाति मनोरिया इम्प्रेसा की मौजूदगी का पता चला है। यह प्रजाति मुख्य रूप से म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया, चीन और मलेशिया में पायी जाती है। पहली बार इस प्रजाति के कछुए भारत में पाए गए हैं।

इस प्रजाति के दो कछुए एक नर और एक मादा को निचले सुबनसिरी जिले के याजली वन क्षेत्र में पाया गया है। इस खोज के बाद भारत में पाए जाने वाले गैर समुद्री कछुओं की कुल 29 प्रजातियां हो गई हैं। इन कछुओं के शरीर पर पाए जाने वाले नारंगी और भूरे रंग के आकर्षक धब्बे इस प्रजाति के कछुओं की पहचान है।

गुवाहाटी की संस्था हेल्प अर्थ, बेंगलूरू स्थित वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी और अरुणाचल प्रदेश के वन विभाग के शोधकर्ताओं ने मिलकर यह अध्ययन किया है।


डॉ शैलेंद्र सिंह और डॉ जयदित्य पुरकास्थ

" मनोरिया वंश के कछुओं की सिर्फ दो प्रजातियां मौजूद हैं। इसमें से सिर्फ एशियाई जंगली कछुओं के भारत में पाए जाने की जानकारी अब तक थी। इस खोज के बाद इम्प्रेस्ड कछुओं का नाम भी इसमें जुड़ गया है। "

वनों में रहने वाले कछुओं की चार प्रजातियां दक्षिण-पूर्व एशिया में पायी जाती हैं, जिनमें मनोरिया इम्प्रेसा शामिल है। नर कछुए का आकार मादा से छोटा है, जिसकी लंबाई 30 सेंटीमीटर है। मनोरिया वंश के कछुए की इस प्रजाति का आकार एशियाई जंगली कछुओं के आकार का एक-तिहाई है। मध्यम आकार के ये कछुए कम से कम 1300 मीटर की ऊंचाई वाले पर्वतीय जंगलों और नम क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

हेल्प अर्थ से जुड़े जयदित्य पुरकायस्थ ने बताया कि “इस प्रजाति का संबंध मनोरिया वंश के कछुओं से है। मनोरिया वंश के कछुओं की सिर्फ दो प्रजातियां मौजूद हैं। इसमें से सिर्फ एशियाई जंगली कछुओं के भारत में पाए जाने की जानकारी अब तक थी। इस खोज के बाद इम्प्रेस्ड कछुओं का नाम भी इसमें जुड़ गया है।”

इस प्रजाति के कछुओं के मिलने के बाद अरुणाचल प्रदेश को कछुआ संरक्षण से जुड़े देश के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शामिल करने पर जोर दिया जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज उत्तर-पूर्वी भारत में, विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में उभयचर और रेंगने वाले जीवों के व्यापक सर्वेक्षण के महत्व को रेखांकित करती है।

अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ पुरकायस्थ के अलावा वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के डॉ शैलेंद्र सिंह तथा अर्पिता दत्ता और अरुणाचल प्रदेश वन विभाग के बंटी ताओ एवं डॉ भारत भूषण भट्ट शामिल थे।
इंडिया साइंस वायर