गर्मियों के तीन महीने पहले हो सकती है जलाशयों में जलस्तर की भविष्यवाणी                                                                 

      

भारत में अक्सर गर्मियों के मौसम में जलाशयों के जल भंडारण स्तर को लेकर बड़ा असमंजस रहता है। भीषण गर्मी पड़ने के साथ ही सरकार और जलविद्युत उत्पादकों को जलाशयों में पानी के स्तर की चिंता सताने लगती है। लेकिन अब इस दुविधा को दूर करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नया समाधान खोज निकाला है, जिससे जलाशयों में जल स्तर की भविष्यवाणी की जा सकती है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिससे गर्मियों के मौसम आने के एक से तीन महिने पहले ही भावी जलाशय भंडारण की शुरुआती विसंगतियों के बारे में पता चल सकता है। यदि जलाशयों में जल भंडारण की भावी संभावित कमी की अग्रिम चेतावनी दे दी जाए, तो सूखे के दौरान उन क्षेत्र विशेष के लिए जल प्रबंधन में सहायता की जा सकती है।

यह मॉडल कई मापदंडों जैसे प्रेक्षित संचित वर्षा, मानकीकृत वर्षा सूचकांक (एसपीआई), मानकीकृत वर्षा वाष्पोत्सर्जन सूचकांक (एसपीईआई), मानकीकृत धारा प्रवाह सूचकांक (एसएसआई) और प्रेक्षित भंडारण आंकड़ों के आधार पर विकसित किया गया है।

प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. विमल मिश्रा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “लगभग 3 से 11 महीनों तक संचित हुए वर्षाजल और मासिक जलाशय भंडारण विसंगतियों के बीच एक मजबूत संबंध पाया गया है। इस तरह के आंकड़ों और अन्य परिणामों के आधार पर जलाशय भंडारण विसंगतियों के बारे में 1 से 3 महीने पहले यथोचित पूर्वानुमान लगा पाना संभव है। इसका मतलब यह है कि जनवरी और फरवरी में ही हम अनुमान लगा सकते हैं कि मई में जल भंडारण का स्तर क्या होगा।”


" भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिससे गर्मियों के मौसम आने के एक से तीन महिने पहले ही भावी जलाशय भंडारण की शुरुआती विसंगतियों के बारे में पता चल सकता है। "

शोधकर्ताओं ने देश के 91 प्रमुख जलाशयों के जलग्राही क्षेत्रों से आंकड़े एकत्रित किए साथ ही प्रेक्षित वर्षा और वायु तापमान जैसे आंकड़ों का भी विश्लेषण किया। इन सभी के आधार पर तीन माह पहले जलाशय भंडारण विसंगतियों की भविष्यवाणी कर सकने वाला एक सांख्यिकीय मॉडल विकसित किया गया। दैनिक वर्षा और अधिकतम और न्यूनतम तापमान के आंकड़े भारत मौसम विज्ञान विभाग और साप्ताहिक जलाशय भंडारण आंकड़े इंडिया-डब्ल्यूआरआईएस डेटाबेस से से लिए गए।

डॉ. मिश्रा के अनुसार मॉडल को वर्ष 2002 के बाद से जलाशय के स्तरों के आधार पर सत्यापित किया गया है। इस पूरी अवधि के दौरान के सभी वर्ष प्रायः सूखे, आर्द्र और सामान्य मानसून वाले थे। यह पाया गया कि मॉडल वास्तव में अच्छी तरह से काम करता है।

दक्षिण एशिया बांध, नदी एवम् जन नेटवर्क के हिमांशु ठक्कर की राय में पूर्वानुमान मॉडल एक अच्छा विचार है लेकिन इसके लिए ऊपरी जल और जलाशय के पानी के उपयोग संबंधी प्रमुख मापदंडों का मालूम होना भी बेहद जरुरी है। साथ ही बड़े पैमाने पर भूजल उपभोग के कारण जहां नदियों के जल प्रवाह पर इसका प्रभाव पड़ रहा है, वहीं जलाशय के जल भंडारण पर भी इसका असर दिखता है। क्योंकि अभी हमारे यहां जलाशय के पानी के उपयोग को लेकर कोई नीति नहीं है। पूर्वानुमान लगाने से पहले इन सभी तथ्यों की पुख्ता जानकारी की आवश्यकता है, तभी यह मॉडल सार्थक होगा।

ठक्कर का मानना है कि “विभिन्न जलाशयों की जलग्रहण स्थितियों के बारे में भी जानकारी का अभाव है। पिछले साल जुलाई में, कावेरी बेसिन में प्रमुख जलाशय लबालब भरे हुए थे, जबकि बेसिन में बारिश सामान्य से 4 प्रतिशत कम हुई थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि जलग्रहण क्षमता बहुत तेजी से घट रही है । यही कारण है कि जलग्रहण की स्थिति वह प्रमुख मापदंड है जो यह तय करती है कि किसी जलाशय विशेष में कितना जल पहुंच पा रहा है, लेकिन विडम्बना यह है कि इससे हम अभी तक अनभिज्ञ हैं।”
इंडिया साइंस वायर

शोध में डॉ. विमल मिश्रा के साथ अमर दीप तिवारी भी शामिल थे। यह शोध जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: एटमॉस्फियर में प्रकाशित हुआ है।

भाषांतरण : शुभ्रता मिश्रा

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