समुद्री अनुसंधान और ब्लू-इकोनॉमी को सशक्त करेगा ओशनसैट                                                                 

      

पीएसएलवी रॉकेट की एक प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटोः क्रिएटिव कॉमन्स)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने महासागरों के अध्ययन के लिए पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय की साझेदारी में तीसरी पीढ़ी के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (ओशनसैट) को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। भू-प्रेक्षण उपग्रह-6 (ईओएस-6) नामक यह उपग्रह गत शनिवार को श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से अन्य उपग्रहों के साथ लॉन्च किया गया है।

उपग्रहों की ओशनसैट श्रृंखला महासागरों के अध्ययन से संबंधित भारत के महत्वकांक्षी मिशन का हिस्सा है। वर्ष 1999 और 2009 में लॉन्च किए गए ओशनसैट-1 और ओशनसैट-2 की कड़ी में लॉन्च किया गया ओशनसैट-3 अपनी तरह का तीसरा उपग्रह है। अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, ओशनसैट की मदद से, समुद्री शैवाल के वितरण से संबंधित आंकड़े प्राप्त करने, फाइटोप्लांकटन निगरानी, मत्स्य संसाधन प्रबंधन, महासागरों द्वारा कार्बन अवशोषण, हानिकारक शैवाल में वृद्धि की चेतावनी और जलवायु अध्ययन सहित परिचालन और अनुसंधान संबधी अनुप्रयोगों में सुधार हो सकेगा।

ओशनसैट-3 में तीन निगरानी सेंसर यानी ओशन कलर मॉनिटर, समुद्री सतह तापमान मॉनिटर और केयू बैंड स्कैट्रोमीटर लगाए गए हैं। भारत की ब्लू इकोनॉमी से जुड़ी आकांक्षाओं को पूरा करने में इन सभी सेंसर्स का विशेष महत्व है। ओशनसैट उपग्रह से समुद्री सतह के तापमान की सटीक जानकारी भी मिल सकेगी। समुद्र सतह के तापमान को मछलियों के समूह से लेकर चक्रवात उत्पत्ति और उनकी चाल सहित विभिन्न पूर्वानुमानों में महत्वपूर्ण मानदंड माना जाता है। प्रवाल भित्तियों की निगरानी और प्रवाल विरंजन की चेतावनी प्रदान करने में भी तापमान एक प्रमुख मानदंड है।


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने महासागरों के अध्ययन के लिए पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय की साझेदारी में तीसरी पीढ़ी के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (ओशनसैट) को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। भू-प्रेक्षण उपग्रह-6 (ईओएस-6) नामक यह उपग्रह गत शनिवार को श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से अन्य उपग्रहों के साथ लॉन्च किया गया है।


इसमें एक संचार पेलोड एआरजीओएस शामिल है, जिसे फ्रांस के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। इसका उपयोग ऊर्जा-कुशल संचार के लिए किया जाता है। इसमें समुद्र में मौजूद रोबोटिक फ़्लोट्स (ऑर्ग फ़्लोट्स), मछलियों पर लगने वाले टैग, ड्रिफ्टर्स और खोज तथा बचाव कार्यों के प्रभावी संचालन में उपयोगी संकट चेतावनी उपकरण शामिल हैं। यह उपग्रह केयू-बैंड पेंसिल बीम स्कैट्रोमीटर से लैस है, जो समुद्री सतह पर उच्च रिजॉल्यूशन विंड वेक्टर (गति और दिशा) की जानकारी प्रदान करता है। ऐसी जानकारी का नाविकों, मछुआरों और शिपिंग कंपनियों के लिए विशेष महत्व है।

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री, डॉ जितेंद्र सिंह ने सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो और एमओईएस टीमों को बधाई दी है। उन्होंने बताया है कि इसरो उपग्रह की कक्षा और आंकड़े प्राप्त करने और उन्हे सुरक्षित रखने जैसी मानक प्रक्रियाओं को जारी रखेगा। इस उपग्रह के प्रमुख परिचालन उपयोगकर्ताओं में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से सम्बद्ध संस्थान भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद और राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र, नोएडा शामिल हैं।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ एम. रविचंद्रन ने कहा है कि इस उपग्रह में महासागर के रंग, एसएसटी और समुद्री सतह की हवाओं का समवर्ती मापन करने की क्षमता होगी, और उम्मीद है कि यह दुनियाभर के वैज्ञानिकों और परिचालन समुदायों की सागर को समझने की उनकी क्षमता वृद्धि में सहायक होगा। लगभग 1100 किलोग्राम वजनी ओशनसैट-3 को समुद्र तल से करीब 740 किलोमीटर की ऊंचाई पर ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के भरोसेमंद प्रक्षेपण यान ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) ने ओशनसैट को सफलतापूर्वक ध्रुवीय कक्षा (सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट) में स्थापित किया है।

इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा है कि पीएसएलवी-सी54 ने पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया है। पीएसएलवी-सी54 पृथ्वी अवलोकन उपग्रह के साथ ही आठ अन्य उपग्रहों को भी साथ लेकर गया है। इसरो प्रमुख ने कहा है कि 44.4 मीटर लंबा रॉकेट सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से निर्धारित समय पर अपने अभियान पर रवाना हुआ। पीएसएलवी-सी54 के प्रक्षेपण के 17 मिनट बाद निर्धारित कक्षा में पहुँचने पर ओशनसैट सफलतापूर्वक रॉकेट से अलग हो गया और उसे कक्षा में स्थापित कर दिया गया।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/MoES-ISRO/Oceansat-3/HIN/28/11/2022