‘स्ट्रोक’ के सटीक आकलन की नई तकनीक                                                                 

      

भारत में असमय मौतों का एक प्रमुख कारण स्ट्रोक है। मस्तिष्क के किसी हिस्से में जब रक्त प्रवाह बाधित होता है, तो स्ट्रोक या मस्तिष्क के दौरे की स्थिति बनती है। स्ट्रोक कई प्रकार के होते हैं, जिनमें अधिकतर मामले इस्केमिक स्ट्रोक के होते हैं। मस्तिष्क तक ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुँचाने वाली धमनियों में ब्लॉकेज होने से इस्केमिक स्ट्रोक होता है। इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने के लिए प्रचलित मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) भरोसेमंद तो है, पर खर्चीली है। यही कारण है कि यह तकनीक भारत की बड़ी आबादी की पहुँच से बाहर है। यह उल्लेखनीय है कि देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों पर केवल एक एमआरआई सेंटर है।

स्ट्रोक की सटीक और किफायती निदान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने एक वियरेबल उपकरण को डिजाइन और उसका विकास किया है। यह उपकरण आकार में छोटा है, जो नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी डायोड (एनआईआरएस एलईडी) के उपयोग से इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने के लिए 650 एनएम से 950 एनएम रेंज़ में प्रकाश उत्सर्जन करता है। यह प्रकाश हीमोग्लोबिन जैसे रक्त के रंगीन घटकों से प्रतिक्रिया रक्त के विशेष लक्षणों को उजागर कर सकता है। इन लक्षणों में, संबंधित हिस्से में ऑक्सीजन सैचुरेशन, ऑक्सीजन उपयोग और रक्त की मात्रा शामिल है।

शोधकर्ताओं ने इस्केमिक स्थितियों में ‘भुजाओं’ और मस्तिष्क के अगले हिस्से (Frontal lobe) में जैव-मार्करों का अध्ययन किया है। उन्होंने अपने उपकरण के प्रोटोटाइप के प्रमाणीकरण के लिए भुजाओं के प्रायोगिक अवरोध का उपयोग किया है। इस प्रकार मस्तिष्क के अग्रभाग पर इस्केमिक स्ट्रोक उत्पन्न किया गया, और यह पाया गया कि नये विकसित उपकरण में निदान की पर्याप्त क्षमता है। आईआईटी मंडी के वक्तव्य में इसे एक इस्केमिक स्ट्रोक का जल्द पता लगाने के लिए पोर्टेबल और आसान उपकरण बताया गया है। इस उपकरण का विकास पीजीएमआईईआर चंडीगढ़ के सहयोग से किया गया है।


भारत में असमय मौतों का एक प्रमुख कारण स्ट्रोक है। मस्तिष्क के किसी हिस्से में जब रक्त प्रवाह बाधित होता है, तो स्ट्रोक या मस्तिष्क के दौरे की स्थिति बनती है। स्ट्रोक कई प्रकार के होते हैं, जिनमें अधिकतर मामले इस्केमिक स्ट्रोक के होते हैं। मस्तिष्क तक ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुँचाने वाली धमनियों में ब्लॉकेज होने से इस्केमिक स्ट्रोक होता है। इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने के लिए प्रचलित मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) भरोसेमंद तो है, पर खर्चीली है। यही कारण है कि यह तकनीक भारत की बड़ी आबादी की पहुँच से बाहर है। यह उल्लेखनीय है कि देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों पर केवल एक एमआरआई सेंटर है।


इस अध्ययन से जुड़े आईआईटी मंडी के शोधकर्ता डॉ शुभजीत रॉय चौधरी ने कहा है कि ‘इस उपकरण की मदद से गाँव-देहात और दूरदराज के पिछड़े क्षेत्रों में जल्द डायग्नोसिस करना आसान होगा।’ नये विकसित उपकरण पर केंद्रित अध्ययन हाल ही में शोध पत्रिका आईईईई सेंसर में प्रकाशित किया गया है। यह शोध पत्र संयुक्त रूप से डॉ शुभजीत रॉय चौधरी, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी, और उनके शोधार्ती दालचंद अहिरवार के साथ-साथ डॉ धीरज खुराना, पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च, चंडीगढ़ ने तैयार किया है।

एक अध्ययनकर्ता दालचंद अहिरवार कहते हैं, “हमें प्राप्त जानकारी के अनुसार संयुक्त मैट्रिक्स से रक्त में हीमोग्लोबिन की अस्थायी गतिविधि दिखती है, जिसकी मदद से उस हिस्से के टिश्यू में रक्त नहीं पहुँचने या रुक-रुक कर पहुँचने का आसानी से पता लगाया जा सकता है। हमने इस्केमिक स्थितियों का अध्ययन करने के लिए ऑक्सीजन सैचुरेशन, और संबंधित हिस्से में ऑक्सीजन की खपत और रक्त की मात्रा संबंधी सूचकांक जैसे बायोमार्करों का उपयोग किया है, जो अन्य तकनीकों की तुलना में इस्केमिक स्थितियों का अधिक सटीक अनुमान दे सकते हैं।”

भारतीय आबादी में स्ट्रोक का खतरा बढ़ रहा है। इसलिए, भारत सरकार कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए अपने राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के तहत स्ट्रोक समेत सभी गैर-संक्रामक रोगों के लिए विभिन्न स्तर पर जल्द से जल्द जाँच और उचित निदान व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस नये विकसित उपकरण से पूरे देश में स्ट्रोक का इलाज सुलभ कराने में मदद मिलेगी।

इस्केमिक स्ट्रोक का भारतीय आंकड़ा चिंताजनक है। हर साल हर 500 भारतीयों में से एक को स्ट्रोक का सामना करना पड़ता है। एक अनुमान है कि स्ट्रोक के कुल मामलों में से लगभग 10 से 15 प्रतिशत मामले 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों में देखे गए हैं। इसके उपचार की व्यवस्था और प्रभावी उपचार ,समस्या के ठीक समय पर जांच लिए जाने पर निर्भर करता है।


इंडिया साइंस वायर

ISW/USM/IIT Mandi/HIN/29/09/2022